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भारतवर्ष एक बहुभाषा-भाषी , जाति-जनजाति तथा अनेक धर्मों का देश है, जहाँ छोटे-छोटे क्षेत्रों में अलग अलग बोली , जाति- धर्म ,कला-संस्कृति के लोग निवास करते हैं । फिर भी भारत में अनेकता में एकता है ।सभी एक-दूसरे को सहायता करते हैं । एक-दूसरे को समझते हैं । भारत की भौगोलिक सीमाएँ न केवल कश्मीर से कन्याकुमारी तक बिखरी हुर्इ हैं बल्कि इस विशाल भूखण्ड में विभिन्न विश्वासों एवं सम्प्रदायों के लोग रहते हैं जिनकी भाषाएँ एंव बोलियाँ एक दूसरे से भिन्न हैं। भारत की अनेकता में एकता इन्हीें अर्थों में है कि विभिन्न भाषाओं, विभिन्न जातियों, विभिन्न सम्प्रदायों एवं विभिन्न विश्वासों के देश में भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता कहीं भी बाधित नहीं है।सिर्फ विशाल भारतवर्ष ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी अलग अलग कला-संस्कृति तथा भाषा को समझने के लिए सदियों से अनुवाद साहित्य की भूमिका गुरुत्वपूर्ण प्रमाणित हुई है।
अनुवाद साहित्य ना केवल एक भाषा की प्रतिरूप है, ये एक जाति की संस्कृति, परम्परा आदि की सेतु तथा वाहक है । अनुवाद साहित्य में मूल विषय का भाव देखते हैं, ना ही शब्दों के प्रतिरूप अर्थ । अनुवाद में भाव को प्राधानता देते हैं। तकनीकी कारण से हो अथवा व्यावसायिक दिशा के लिए ही हो, अनुवाद माध्यम बहुत बड़ा वाहक है । वर्तमान युग को अनुवाद युग कहें तो गलत नहीं होगा । आवश्यकता पूर्ति के लिए लोगों को एक जगह से दूसरी जगह तक जाना पड़ रहा है । इसके लिए उस क्षेत्र की भाषा जानना बेहद जरूरी है । इस हेतु अनुवाद साहित्य काम आता है । अंग्रेज़ जब भारत आए थे तब भाषाओं के अनुवाद द्वारा ही भारतीय संस्कृति को तथा भारत वासियों को जान पाए थे और भारत में उपनिवेश स्थापित करके धीरे-धीरे भारत पर कब्जा किया था ।
भाषा मानव मन का भाव है । भाषा द्वारा ही लोग एक दूसरे को अपने मन के दुख, दर्द, चाहत इत्यादि व्यक्त कर सकते हैं । भाषा के आदान-प्रदान से लोग एक दूसरे को समझते हैं। भाषा साहित्य ही किसी भी जाति ,धर्म , संस्कृति का आइना है । भाषा के माध्यम से ही हर एक के हृदय के भाव निकलते हैं। इसलिए समाज ,शहर ,गाँव , देश में रह रहे लोगों के बीच समन्वय के लिए एक दूसरे की भाषा को जानना जरूरी है । पहले जैसा बताया कि भारतवर्ष एक ऐसा देश है जहाँ अनगिनत भाषाएँ, जाति , धर्म और संस्कृति के लोग निवास करते हैं । ऐसे में अगर एक साथ रहें तो एक दूसरे को जानना जरूरी है । एक दूसरे को तब जान सकेंगे जब एक-दूसरे की भाषा समझ पायेंगे । इसके लिए अनुवाद साहित्य बेहद जरूरी है । भारत जैसे राष्ट्र के राष्ट्रीय एकता के लिए अनुवाद साहित्य बहुत ही महत्वपूर्ण है ।
इसलिए मैं चाहती हूँ, भारत की हर भाषाओं की परम्परा, संस्कृति, रीति नीति सब एक दूसरे की भाषा में अनुवाद हो । हिंदी भारत की राजभाषा है । मेरे ख्याल से आज के जमाने में हिंदीतर राज्यों में भी थोड़ी बहुत हिंदी सबको समझ में आती है । इसलिए हर क्षेत्र की अपनी कला, संस्कृति का हिंदी में अनुवाद हो ताकि भारत के कोने कोने में रह रहे लोगों को सभी पढ़कर जान सकें और समझें ताकि भारत में एकता बनी रहे। मैं चाहती हूँ कि पूर्वोत्तर भारत को जो लोग आज तक नही जान पाए हैं वे हिंदी के माध्यम से ही जानें, समझें। हिन्दी राष्ट्रभाषा बने और भारत की हर भाषाओं में हिन्दी का अनुवाद हो और सभी क्षेत्रीय भाषाओं का हिन्दी में अनुवाद हो। जय हिंदी – जय भारत का नारा लगा सकें । जय हिंद ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।
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