
ग़र इंसां का पता नही होता।
ज़िंदगी भी ज़िया नही होता।
पता नही होता।
ज़िंदगी भी ज़िया नही होता।
वो सफ़र में मिला नही होता।
दर्द मेरा हरा नही होता।
ज़िंदगी की पतंग भी उड़ती।
डोर से फ़ासला नही होता।
दौलत ही चीज़ ऐसी होती हैं।
क्या इंसां में नशा नही होता।
दूर नज़रों से मेरा हमसफ़र हैं।
क़ाश मुझसे ख़फ़ा नही होता।
आसमाँ में ग़र आशियाँ होता।
इस जहाँ का पता नही होता।
लब पे आकिब’ न नाम ये लाता।
तज़किरा भी तेरा नही होता।
#आकिब जावेद
परिचय :
नाम-. मो.आकिब जावेदसाहित्यिक उपनाम-आकिबवर्तमान पता-बाँदा उत्तर प्रदेशराज्य-उत्तर प्रदेशशहर-बाँदाशिक्षा-BCA,MA,BTCकार्यक्षेत्र-शिक्षक,सामाजिक कार्यकर्ता,ब्लॉगर,कवि,लेखकविधा -कविता,श्रंगार रस,मुक्तक,ग़ज़ल,हाइकु, लघु कहानीलेखन का उद्देश्य-समाज में अपनी बात को रचनाओं के माध्यम से रखना