कल -कल करती अविरल जल की धारा… पर्वत से झरती पावन धारा… पशु -पक्षियों की प्यास बुझाती , प्रकृति का सुंदर श्रृंगार करती ! स्वच्छ ,निर्मल ,निश्चछल ,चंचल , बहती जाती … झाग बनाती जैसे दुग्ध धारा कल कल……………. आकुल -व्याकुल -सी हो रही , कोई काव्य रचने को मचल […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
वैश्वीकरण के इस दौर में सांस्कृतिक अन्तःक्रिया और समंजन की प्रकिया में एक त्वरा परिलक्षित हो रही है। संस्कृति के महत्तम-अवयव के रूप में साहित्य भी इससे असंपृक्त नहीं है। इस संदर्भ में दृष्टव्य है कि भारतीय-भाषाओँ में जहाँ पहले सिर्फ अंग्रेजी-काव्य का व्यापक प्रभाव था, वहीं आज जापानी-काव्य-विधाओं ने […]
