अब्र ने चाँद की हिफ़ाजत की, चाँद ने खुद भी खूब हिम्मत कीl आज दरिया बहुत उदास लगा, एक कतरे ने फिर बग़ावत कीl वो परिंदा हवा को छेड़ गया, उसने क्या खूब ये हिमाक़त कीl वक़्त मुंसिफ़ है फ़ैसला देगा, क्या जरूरत किसी अदालत कीl धूप का दम निकल […]
काव्यभाषा
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