मर्यादा के गढ़ गिरे,मानव हुआ स्वतंत्र। रिश्ते नाते भूलकर,जपे स्वार्थ का मंत्र ll मानव की कीमत नहीं,मँहगा हुआ पदार्थ। भौतिकता के बोझ में,दबा हुआ परमार्थ ll वातायन गायब हुए,घर-घर हुआ उदास। गौरैया ने कर लिया,घर के बाहर वास ll हाँफ रही है ज़िंदगी,हुआ तवे-सा गाँव। कुछ रुपयों में बिक गई,वट,पीपल […]