जनता के लिए जिस कवि ने सत्ता को सिंहासन खाली करने कहा स्वतंत्र भारत में, वीर-रस, प्रगति चेतना और जन-चेतना को लेकर जो कविताई हिंदी के ‘दिनकर’ ने की वह अन्यतम है। वे लिखते हैं : “गौरव की भाषा नयी सीख, भिखमंगों की आवाज बदल ! सिमटी बाँहों को खोल […]
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अनेक राह हैं…. लंबी-लंबी सड़कें, उबड़-खाबड़ वीथिकाएं, कच्चे-पक्के रास्ते. बर्फ वाले पहाड़, गहरी तलहटियां, चाय-बागानों की ढलान. उजड़े-बियाबान, घने-वन. हर जगह है मौजूद, इस दुनिया का वजूद. फिर भी,बन न सकी एकछोटी,कच्ची-पक्की राह तुम्हारे और मेरे दरम्यान,, जिसपर चलकर हम आ सके इतने करीब, कि, ‘स्व’ समाहित हो, […]
