अन्जानों के साए में अपनों को खोजता है, बड़ा बावरा है वो जो इस कदर सोचता है। कौन कहता है गिरते नहीं जाँबाज जंग-ए-मैदान में, उसे क्या पता जो मैदान छोड़ स्थान ढूँढता है। लड़खड़ाया-सा क्यों है दौरे-ए-जूनून में, मन्जिल बाकी है अभी वो, नई राह ढूँढता है। रिश्तों की […]