जब समाज में गहरी सांस्कृतिक संवेदनहीनता जड़ें जमा चुकी हो और राजनीति अपने सर्वग्रासी चरित्र में सबसे हिंसक रूप से सामने हो, तो लोक और लोकजीवन की चिंताएं बेमानी हो जाती हैं। गहरी सांस्कृतिक निरक्षरता और जड़ता से भरे-पूरे नायक, लोक पर अपनी सांस्कृतिक चिंताएं थोपते हुए दिखते हैं। सबका […]