प्रथम हमारी ‘जननी’ माता। दूसरी हमारी ‘धरती’ माता।! तीसरी हमारी ‘प्रकृति’ माता। चौथी हमारी ‘नदियाँ’ माता। पाँचवी हमारी ‘गैया’ माता। छठवीं हमारी ‘रोज़ी-रोटी’ माता॥ #डा. महेशचन्द्र शांडिल्य Post Views: 230
धर्मदर्शन
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हे माधव, कहाँ…हो आओ.. हे ..नाथ भूल चुके हैं पार्थ। कर्म ..की ..गीता कर्तव्य..से..रीता धर्म का आवाहन् नहीं ..रहा..पावन। जब…. कि , पाप ..का ..सूरज ..चढ़ा है, जयद्रथ ने चक्रव्यूह गढ़ा है महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार है कुरुक्षेत्र.. में ..रण.. हुंकार … है। किन्तु …गांडीवधारी अर्जुन, मोह.. की ..माया ..से […]