मंदिरों के बाहर पड़े भगवान को चढ़ाए पूजा पुष्प,जिनको भक्तगण आंख बंदकर कुचल के चले जाते हैं। पूरी श्रृद्धा के साथ भगवान की प्रतिमा के मुंह में ठूंसा हुआ मिष्ठान्न,मतलब जब तक भक्त द्वारा चिपकाई गई बरफी प्रभु-प्रतिमा के मुंह से चिपक न जाए,भक्त को संतुष्टि नहीं होती है। बाद में वही मिठाई का टुकड़ा ज़मीन पर गिर जाता है और लोग उसी पर पैर रखकर बेखबर हो चले जाते हैं। यह सब मैं कई सालों से देखती आ रही हूँ। मन में हमेशा यह प्रश्न आता है-क्या भक्तों की भक्ति बस अपनी पूजन थाल का प्रसाद या पूजा सामग्री भगवान को अर्पण करने तक ही सीमित होती है??
शिव रात्रि के दिन,भगवान के श्री लिंग पर चढ़ाया जाने वाला दूध निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण कई छोटे मंदिरों में,रास्ते पर बहकर आता रहता है l भक्ति में तल्लीन भक्त इन्हीं पर पैर धर मंदिर में प्रवेश करते रहते हैं।इसे उनकी किंकर्तव्यविमूढ़ता भी कहा जा सकता है। अक्सर पूजा के बाद भगवान पर चढ़े फूल-फल को विसर्जित करने की यथोचित व्यवस्था न होने के कारण मंदिर के बाहर ही फेंक दिए जाते हैं,फिर उस पर कुत्ते-बिल्ली जो चाहे मुंह लगाए,कोई फर्क नहीं पड़ता है..भक्त अपनी भक्ति जता कर जा चुके होते हैं।
आज अपने बेटे को ट्यूशन छोड़कर आ रही थी,तो किसी के घर के सदस्य बड़ी श्रृद्धा-भक्ति के साथ गणपति प्रतिमा को विसर्जन हेतु ले जा रहे थे। विसर्जन प्रायः हमारे निवास स्थान के पीछे, बायपास सड़क के समानान्तर बनी नहर में किया जाता है। यह नहर कहीं-कहीं शहर का कचरा डालने का एक कचराखाना-सी बन गई है। लोग अक्सर बेबाक हो हर प्रकार का अवशिष्ट विसर्जन कर चले जाते हैं।
मेरे बेटे ने मुझसे प्रश्न किया-‘माँ ये गणपति जी की प्रतिमा को उसी नहर में विर्सजित करने ले जा रहे हैं,जहाँ हर प्रकार का अवशिष्ट बहाया जाता है?? यह तो बहुत ही गलत है!!!! निरुत्तर थी!!!
क्यों था मेरे पास जवाब एक बालक के पूछे गए तर्कसंगत प्रश्न का??????
उत्सवों के महीने शुरू होने वाले हैं। अभी गणपति उत्सव की धूम है,फिर दुर्गा-पूजा,और भी कई ऐसे सार्वजनिक पूजोत्सव एक के बाद एक आने वाले हैं। मैं भी दुर्गा-पूजा के समय पूरे उत्साह और श्रृद्धा के साथ पूजा पंडालों में जा माँ दुर्गा को पूजा एंव पुष्पांजली अर्पित करती हूँ। पांच दिनों तक पूजावेदी की पवित्रता का सम्मान हर कोई करता है।
पूजा के उपरांत मैं ही नहीं,अन्य बहुत से श्रृद्धालु पुरोहित से देवी माँ के पूजा-घट से पूजा-पुष्प माँ के आशीर्वाद मांगते हैं। मैं अक्सर इन पुष्पों को अलमारी के कागज़ के नीचे दबा देती हूँ। इससे यह अनुमान लगा सकते हैं कि,घट पर चढ़े माँ को अर्पित यह बेलपत्र एंव पुष्प देवी माँ का साक्षात् आशीर्वाद समतुल्य होता है।
परन्तु एक बार पूजातिमा से जाने के बाद पूजा स्थल से विसर्जन स्थल तक कितने ही प्रतिमा पर पड़े पुष्प,बेल पत्र यत्र-तत्र गिरते रहते हैं, उनका क्या.?
जितने दिन प्रतिमाओं की पूजा होती है,तब तक पवित्रता को आदर दिया जाता है। पूजन-विसर्जन के बाद,अक्सर नदी किनारे प्रतिमाओं के बहाए अंश पड़े मिलते हैं,तब तक वह अपनी पवित्रता और दैवत्व सब खो चुके होते हैं भक्तों की नज़रों में। शेष जो रह जाता है वह इन पूजोत्सव के बाद तीव्रता से बढ़ा जल प्रदूषण।
मुझे समझ नहीं आ रहा बालक द्वारा किए गए प्रश्न का क्या उत्तर दूँ! किसको समझाने की आवश्यकता है? बालक को या भक्तों को ???? समझ में
नहीं आता…क्या आपके पास है उत्तर…!
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।