दो धुरी की सृष्टि सारी एक है नर एक है नारी छोटा बड़ा नही है कोई इन्ही से बनती सृष्टि सारी बिन नारी के पुरुष अधूरा पुरुष बिन अधूरी है नारी दोनों पूरक एक दूजे के सृष्टि दोनों से चलती सारी नारी बिना घर नही बनता नारी से ही संस्कार […]
काव्यभाषा
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