Read Time2 Minute, 14 Second
मुझे मत मिटाओ,
मैं तुम्हारी कोख की
नन्हीं कली हूं।
उत्थान को तुम देखती,
करके खुद का ही पतन
कैसे रहती थाती तुम्हारी,
गर नानी करती यही जतन
जो जीवन मिला है तुमको,
वो भी किसी का दान था
सोचो जरा तुम सोचकर,
किसे मारने चली हूं।
ठानी है मारने की तो मार दो,
पर एक दिन
तुम्हारे सीने में उठेगी हूक
याद आएगी,अनजानी कूक,
जो आवाज न बन सकी
तुम्हारी दया,कर दी गई मूक,
क्या चाहा है मैंने,क्या मांगा है
जो इस तरह मुझे सूली पे टांगा है,
किसी और की आस में मैं ही
क्यों खली हूं।
वचन दो,वादा करो,
मुझपे नश्तर न चलाओगी
बुलाओगी,खिलाओगी,
सदा दुलराओगी
मैं हंसूंगी,हंसाऊंगी,
सदा मन बहलाऊंगी
लगाकर सीने से देखो,
एक बार
मैं भी कान्हा-सी मनचली हूं॥
#अजीतसिंह चारण
परिचय: अजीतसिंह चारण का रिश्ता परम्पराओं के धनी राज्य राजस्थान से है। आपकी जन्मतिथि-४ अप्रैल १९८७ और शहर-रतनगढ़(राजस्थान)है। बीए,एमए के साथ `नेट` उत्तीर्ण होकर आपका कार्यक्षेत्र-व्याख्याता है। सामाजिक क्षेत्र में आप साहित्य लेखन एवं शिक्षा से जुड़े हुए हैं। हास्य व्यंग्य,गीत,कविता व अन्य विषयों पर आलेख भी लिखते हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं तो राजस्थानी गीत संग्रह में भी गीत प्रकाशित हुआ है। लेखन की वजह से आपको रामदत सांकृत्य साहित्य सम्मान सहित वाद-विवाद व निबंध प्रतियोगिताओं में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार मिले हैं। लेखन का उद्देश्य-केवल आनंद की प्रप्ति है।
Post Views:
702