ठलुआ और ठंड

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sunil jain
देश में ठलुओं की कमी नहीं है। ठलुओं को ठंड सबसे ज्यादा लगती है। ठलुओं और ठंड का वही रिश्ता है,जो बाबूओं का लंच समय में ताश का। ठंड आते ही ठलुए सड़क पर ऐसे निकल आते हैं जैसे `प्रेम-दिवस` से पहले लड़का दोस्त और लड़की दोस्त। ये दीगर बात है कि,ठलुओं की लड़की दोस्त  नहीं होती। ठंड में ठलुए आसानी से पहचान में आते हैं। ये अकसर मफलर,कोट,जैकेट या फिर कम्बल ओढ़े पाए जाते हैं। जब चार ठलुए इकटठे हो जाते हैं तो फिर `ठलुआपंती` शुरू हो जाती है। ठलुआपंती के साथ-साथ कई और पंती भी शुरू हो जाती हैं। ठलुओं की सबसे बड़ी विशेषता है,उनका चिन्तन राष्ट्रीय स्तर का होता है। देश की किसी भी समस्या का हल मिनटों में चलते-चलते निकाल लेते हैं,लेकिन कोई भी उनके इस चिन्तन को मान्यता नहीं देता है,यही देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।  
ठंड में जिस तरह ठलुआपंती का महत्व है,उसी प्रकार पकोड़ों का भी। पकोड़ों के साथ चाय हो जाए तो फिर क्या है। ठलुआपंती का कोई विशेष क्षेत्र नहीं होता,यह चलते हुए भी की जा सकती है। 
ठंड आते ही ठलुए,मूंगफली,कोट,जैकेट,मफलर के साथ दिखाई देने लगते हैं। ठंड का अहसास हमें ठलुओं को देखकर होता है। ठलुओं को देखकर ठंड का अहसास वैसे ही हो जाता है,जैसे पुलिस को देखकर कानून का। ठंड में ठलुए कोट पहन रैम्प पर,जैकेट पहने वातानुकूलित कार में या फिर मफलर बांधकर इंडिया गेट पर अथवा इंडिया गेट जैसी कोई जगह पर मिलते हैं,जहां पर ठलुए बिना किसी पुलिस व्यवधान के ठलुआपंती कर सकें। ठलुओं को लुगाई पसंद हो या न हो,लेकिन रजाई जरूर पसंद होती है। रजाई से कई नई संभावनाओं पर गहन विचार-विमर्श किया जा सकता है। लुगाई सीमा बांधती है,तो रजाई सीमाओं के बंधन से मुक्त करती है।  
गरीब आदमी ठलुओं को देखकर ही ठंड का अंदाज लगाता है। ठंड में ठलुओं का मुख्य शगल मूंगफली,चखना और सौन्दर्य उपासना है। ठंड गरीबों को नहीं लगती। उन्हें भी नहीं लगती जो सुबह-सुबह काम की तलाश में चौराहे पर गैती-फावड़ा लेकर उकड़ू बैठे या खड़े रहते हैं। पहले हरिया का घर हर कोई जानता था,लेकिन अब हरिया हर चौराहे पर खड़ा मिल जाता है। 
ठंड पर केवल ठलुओं का एकाधिकार है। अमरीका से पहले ठलुओं ने इसे पेटेंट करवा लिया है। ठंड से बचने के सभी साधन बुध बाजार में भी मिल जाते हैं,लेकिन वहां पर नीलाम होने वाले कोट,जैकेट से लेकर मफलर नहीं मिलते, न ही ऐसे रईस मिलते हैं,जो उतरन को लाखों रुपए में खरीद सकें। बुध बाजार में उतरन भी औने-पौने दाम में मिलती है, लेकिन इस उतरन को पहनकर केवल ठंड से बचा जा सकता है। अखबारनवीसों की इस उतरन में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। 
पार्टी ठलुओं का शगल है और आम आदमी का रोजगार। ठलुओं की पार्टी से कई को रोजगार मिल जाता है। यह दीगर बात है कि,दल में आम आदमी के लिए रोजगार की बात नहीं की जाती है। दल में रोजगार की बात अगर निकलती भी है,तो चखना समाप्त होते-होते रोजगार की संभावनाएं सौन्दर्य बोध के साथ समाप्त हो जाती हैं।  मुहल्ले के ठलुए आग जलाकर गर्मी के अहसास के साथ काम की कल्पना मात्र से रोजगार की तलाश में जुट जाते हैं। इस ठंड में भला कैसे काम करें। ठंड थोड़ी कम हो जाए तो काम शुरू किया जाए। ठलुओं के लिए ठंड समाप्त होते ही गर्मी शुरू हो जाती है। ठलुओं के लिए गर्मी में काम करना भी आसान नहीं होता। थोड़ी गर्मी कम हो जाए तो काम किया जाए। वैसे ठलुए अगर काम करने लगेंगे,तो हो लिया काम…। ठलुए ऐसे रोजगार की तलाश में रहते हैं, जिसमें ठलुआ बैठकर दाम कमाया जा सके। 
कोट-जैकेट वाले बर्फीले स्थानों पर जाकर गरम कमरे में बैठकर सौन्दर्य बोध के साथ ठंड में गरीबी महसूस करते हैं। गरम कमरे में मदिरा के साथ गरीबी दूर करने के उपायों पर गम्भीर चर्चा की जाती है। गम्भीर चर्चा अकसर ऐसे ही स्थानों पर होती है,जहां चखना,खुला टखना सौन्दर्य बोध अधखुले बालों के साथ मध्यम रोशनी में हो। 
ठंड के साथ ही इसके विपरीत प्रभाव भी दिखाई देने लगते हैं। बुडढों का घूमने जाना,गरीबों का चाय के लिए तरसना,दादाजी का खों-खों करना,चिकित्सकों का मुस्तैद हो जाना,कोहरे में मनचलों का घूमना,चलती कार का रोजनामचा अखबारों में निकलना,श्मशान में बाजार जैसी भीड़ होना,दारू की दुकान पर लम्बी कतार होना और न जाने क्या-क्या ?  
ठंड में सुबह-सुबह गरमागरम जलेबी,समोसे,पोहे जहां सुखद अहसास देते हैं,वहीं ठंड से इनका रिश्ता सड़क में गडढों और गडढों में सड़क जैसा होता है। ठंड में जलेबी, समोसे,पोहे टोल टैक्स की तरह होते हैं,जो गरीबों पर नहीं लगते। गरीब केवल टोल टैक्स लगते हुए देख सकते हैं, लेकिन उन्हें देने की उनकी औकात नहीं होती। 
अगर किसी ठलुए के कोट-जैकेट या मफलर की नीलामी से किसी झोपड़ पटटी का उद्धार हो सके,तो देश की प्रगति में वह एक मील का पत्थर साबित होगा।     
            #सुनील जैन ‘राही'
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) है| आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl  पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl

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