Read Time1 Minute, 21 Second
कुदरत की कारीगरी हो,
ख़ुद अपनी पहचान हो।
मत भूलो वज़ूद अपना,
तुम भी एक इंसान हो॥
मानवता का मंदिर हो तुम,
प्रेम की मिसाल हो।
माटी के पुतले अजीब,
तुम भी एक इंसान हो॥
मासूमियत की मूरत हो तुम,
छल-कपट अज्ञान हो।
दुनियादारी में उलझे हुए,
तुम भी एक इंसान हो॥
पा लो मेहनत से सब कुछ,
लक्ष्य न अंजान हो।
ओ अपने भाग्य विधाता,
तुम भी एक इंसान हो॥
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए किया हुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
Post Views:
558
Tue Jan 30 , 2018
‘हम भारत के लोग’ से शुरू होने वाले हमारे संविधान की प्रस्तावना में आगे कहा गया है कि हम अपने लिए एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना का संकल्प लेते हैं। २६ जनवरी १९५० से लागू हुए इस संविधान में हमने लिए गणराज्य या गणतंत्र का चुनाव तो […]