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(कासगंज की घटना पर आधारित)
छोड़ो छोड़ो अब तो छोड़ो,अहिंसा की राहों को,
गद्दारों के हाथ काट दो,या भूलों उन आहों को।
सीमा और घर की वेदी पर,कुर्बां ‘राहुल’ होते हैं,
‘चंदन’ जैसे वीर पुत्र को,रोज-रोज हम खोते हैं।
जो सीने पे गोली मारे,उनको ये ललकार है,
लहराए बस अपना ‘तिरंगा’,मौत हमें स्वीकार है।
सांसें देकर भी फहराया,लाज बचाई गणतंत्र की,
कहां गए वो सारे ढोंगी,जिन्हें फिकर थी लोकतंत्र की।
खामोश हो गए आज विभीषण,लगता मिली दौलत भारी है,
ये बातें है उस मजहब की,रग में जिनके गद्दारी है॥
हम वंशज परशु-राम-कृष्ण के,धर्म मार्ग पे चलते हैं,
रावण जैसे अत्याचारी,यहां हर वर्ष ही जलते हैं।
भूल गए जो इतिहासों को,फिर से याद जरा कर लें,
चलो आज मजहब की खातिर,थोड़ा-थोड़ा हम मर लें।
जो न बोले जय भारत की,उनको मौत सजा होगी,
जो छोड़े पथ मानवता का,उनसे भी न रजा होगी।
जिनको अहिष्णु लगे ये भारत,मुल्क वो मेरा छोड़ दें,
विवश न इतना करो आज ही,कि सहनशीलता तोड़ दें।
जो बनकर अजमल बैठे हैं,उन्हें धिक्कार भारती की,
बने अशफाक,कलाम,औ हमीद जो,उन्हें नमन करे थाल आरती की॥
#जतिन शुक्ल ‘फ़ैज़ाबादी’
परिचय : जतिन शुक्ल का साहित्यिक उपनाम-कवि जतिन फैजाबादी है। आपकी जन्मतिथि-२६ जनवरी १९९८
एवं जन्म स्थान-फैजाबाद है। में वर्तमान मिल्कीपुर(फैजाबाद-उत्तर प्रदेश) में रहते हैं। इनकी शिक्षा-बीए(जारी)है। आपको वन्दे मातरम सम्मान प्राप्त हुआ है। आपके लेखन का उद्देश्य-सामाजिक स्तर पर जागृति फैलाना है।
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