सरस्वती वंदना

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deelip sinh                        *
माता तेरी वंदना को,आया एक बार फिर,
हार गया खुद से तो लाया एक हार हूँ,
मति भ्रष्ट हो गई है,गति अतिहीन हुई
आस विश्वास ले के आया तेरे द्वार हूँ,
काम-क्रोध-मद-लोभ,मन में बसे हैं आज
शक्तिहीन कविता की कुंद हुई धार हूँ,
प्रेम विश्वास की असीम शक्ति मांगता हूँl 
भक्ति भावना का दीन-हीन उदगार हूँll 
                      
                      
बुद्धि-बुद्धिहीन हेतु,बल-बलहीन हेतु,
शक्ति-शक्तिहीन हेतु शक्ति अवतार हो
शब्द-शब्दहीन हेतु,भाव-भावहीन हेतु,
स्वर-स्वरहीन हेतु,कंठ रस धार हो
ज्ञान-ज्ञानहीन हेतु,मान-मानहीन हेतु,
नेत्र-नेत्रहीन हेतु,दिव्य दृष्टि द्वार हो
कुछ नहीं जिसके,उसकी तुम्हीं हो एकl 
सर्वहीन सुत हेतु,सर्व संसार होll 
                        
                       *
मन से मलिन अति,द्वार खड़ा मंदमति,
भक्तिहीन शक्तिहीन,सुत को सुधारि दे
वासना का वास न हो,कामना की घास न हो,
जड़ता जननी आज जड़ से उखारि दे
खेत खोदता किसान वैसे तू हृदय को खोद,
खरपतवार सब स्वकर निकारि दे।
प्रेम रस पावन में शोधित समस्त शुद्ध,
मन की मृदा में माँ तू वर्ण बीज डारि देll 
                       
                       
वर्ण बीज फूटे नव अंकुर उगे हैं शब्द,
ममता से सींच दे माँ नेह बरसात दे।
शाख निकलेंगी शब्द वाक्य बन जाएंगे माँ,
कर दे अलंकृत हरित अति पात दे।
सुन्दर सुखद शुभ्र सुमन सरीखे छंद,
 मधु मकरंद व सुगंध रस मात दे।
गीतों की फसल बडी सुन्दर उगेगी सुन,
भारत में भारती तू एक शुरुआत देll 
                       
                        
अन्न धन धान्य से समृद्ध रहा देश सदा,
फूलों की फसल आप आकर उगाओ माँ।
राष्ट्र पुष्प भारत का कोमल कमल बना,
जन-मन को सरोज आप ही बनाओ माँ।
दूषित सरोवर समाज में है पंक भरा,
निर्मल नीर करि पंकज खिलाओ माँ। 
जाति-धर्म-भेदभाव शान्त हो सरोवर का,
जन-मन जलज में आप बैठ जाओ माँll 
                     #दिलीप सिंह ‘डीके’

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3 thoughts on “सरस्वती वंदना

  1. तब तक प्रयास जब तक हस्ताक्षर आटोग्राफ न बन जाये।
    संकल्प ही सफलता है।
    प्रयास ही राहे हैं।

  2. Bahut badiha guru ji aage bhi likhte jayiye isi tarah ki sundar rachnaye best of luck with the heart for you

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