तुम्हें एहसास नहीं

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jayati jain

किसी की रूह से जुड़कर
उसका वजूद लूटने वाले
खुद की तलाश में मारा- मारा,
फ़िर रहा वो आवारा।
तुम क्या जानो-क्या होती है
तन्हाई,चीखती खामोशी,
तुम्हें एहसास नहीं कराया

मैंने बंद कमरे में कैद-घुटन का।
वो चिलमिलाती धूप-सी
चुभती तेरी यादें,

आंखों में खून ला देती हैं
लेकिन तुम तो ऐसे लोगों

से घिरी हो,

जैसे पतंग कटकर हवा के साथ नाचती है।
उस धागे को गौर से देख ए बे-गैरत,

तुझे नाज़ों से सम्भाला जिसने
अपने रुमानी अंदाज़ से
लुभाया जिसने,रातों को सजाया जिसने,
दूसरे से मोहब्बत जताता तेरा गुरूर
एक बार ऐसा तोड़ना है,
आ गिरे शाख से टूटे पत्ते की तरह
मेरी बांहों में,हवा का रुख

ऐसा मोड़ना है।
टूट कर बिखरेगी आएगी,
मेरी राह में गिड़गिड़ाती हुई

करवाऊंगा हर उस दर्दे-जख्म का एहसास,
जो हर रोज़ तू मुझे देती है
इक-इक अश्क दरपर्दा होकर।
जहन में क्रांति ला रहा है,
आंख से निकाल दर्द चार दीवारों में कराहकर छुपाया है मैंने।
हुस्न पे नाज़ बहुत है तुझे
ए नाजनीन,गैरों को आशिक बनाती है,
तड़पेगी जब बिकेगी हुस्ना

दो कौड़ी में गैरों के बाज़ार में।
वक्त अभी है लौटकर आज़ा सितमगर,
अभी जेहन में ऐतबार बाकी है,
कल तुझे फरागत न थी आज मुझे नहीं,
कहने को तैयार,वर्ना साकी है।

                #जयति जैन (नूतन)

परिचय: जयति जैन (नूतन) की जन्मतिथि-१ जनवरी १९९२ तथा जन्म स्थान-रानीपुर(झांसी-उ.प्र.) हैl आपकी शिक्षा-डी.फार्मा,बी.फार्मा और एम.फार्मा है,इसलिए फार्मासिस्ट का कार्यक्षेत्र हैl साथ ही लेखन में भी सक्रिय हैंl उत्तर प्रदेशके रानीपुर(झांसी) में ही आपका निवास हैl लेख,कविता,दोहे एवं कहानी लिखती हैं तो ब्लॉग पर भी बात रखती हैंl सामाज़िक मुद्दों पर दैनिक-साप्ताहिक अखबारों के साथ ही ई-वेबसाइट पर भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl सम्मान के रुप में आपको रचनाकार प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत `श्रेष्ठ नवोदित रचनाकार` से समानित किया गया हैl अपनी बेबाकी व स्वतंत्र लेखन(३०० से ज्यादा प्रकाशन)को ही आप उपलब्धि मानती हैंl लेखन का उद्देश्य-समाज में सकारात्मक बदलाव लाना हैl

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