मैं हूँ खुशरंग हिना

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kumari archana
हिना ही तो हूँ मैं,
हिना हाथों पे
अपना रंग छोड़ती है,
मैं लोगों के चेहरे पे मुस्कान।
वो भी खुद सिलबट्टे पे
घिस-घिसकर पिस जाती,
और मैं भी तुम्हारे इंतजार में
रोज-रोज मिटकर,
प्यार तो हम दोनों ही करते
बस फ़र्क इतना है,
कोई घिसकर तो
रोज जीकर मरता।
कैसी विरह की आग है
जिसमें कोई एक बार भस्म हो जाता,
कोई पतंगे-सा तड़प-तड़प के
क्यों मोहब्ब़त में इतना ग़म मिलता है,
कभी प्रेमी,प्रेमिका से मिलता है तो
कभी प्रेमी-प्रेमिका किसी और
के हो जाते,
जैसे हिना किसी और के
हाथों में सजती है,
क्या मैं भी किसी और की
दुल्हन बन सजूँगी मिटने के लिए,
या कई हाथों का
खिलौना बन जाऊँगी।
फिर उन वफाओं का क्या!
उस मोहब्ब़त का क्या…
उस इबादत का क्या,
उस एतब़ार का क्या
और उस इंतज़ार का,
जो मैंने किया तुम्हारे लिए।
जवानी से लेकर ढलती जवानी तक,
दमकती से लेकर झुर्रियाँ
पड़ती चमड़ी तक
पतली से बैडोल होती काया तक,
गुजरे जमाने से लेकर आज तक
क्या यूँ बेकार हो जाएंगे,
जब मुझे तुम्हारी नहीं,
किसी और की होना था॥
                                                                               #कुमारी अर्चना

परिचय: कुमारी अर्चना वर्तमान में राजनीतिक शास्त्र में शोधार्थी है। साथ ही लेखन जारी है यानि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर लिखती हैं। आप बिहार के जिला-पूर्णियाँ ( हरिश्चन्द्रपुर) की निवासी हैं।

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