पराधीन सुख पाता है

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amitabh priydarshi
पराधीन हो जीना इस जग में किसको भाता है,
लेकिन काजल को हर दिन आंखों में सोना आता है।
कानों की बाली भी,कानों से बंधकर बजती है।
हर युवती की नाक की नथिया भी वहीं पे सजती है।
हार भी हंसकर सहज गले का प्यार यहां बन जाता है।
कमरधनी को भी कहां स्वच्छंद जीवन भाता है।
प्रिय की कटि से बंधकर उसका हर घुंघरू बल खाता है।
तो फिर कहो कहां किसी को पराधीन तरसाता है ?
पायल बंधती पांवों तभी मुखर हो पाती है।
रुनझुन-रुनझुन बजकर वह बिछुआ को तरसाती है।
है अजब रीत,श्रृंगार कभी स्वतंत्र नहीं रह पाता है।
पराधीन होकर ही वह जीवन में मुस्काता है॥

#अमिताभ प्रियदर्शी 

परिचय:अमिताभ प्रियदर्शी की जन्मतिथि-५ दिसम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-खलारी(रांची) है। वर्तमान में आपका निवास रांची (झारखंड) में कांके रोड पर है। शिक्षा-एमए (भूगोल) और पत्रकारिता में स्नातक है, जबकि कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता है। आपने कई राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक अखबारों में कार्य किया है। दो अखबार में सम्पादक भी रहे हैं। एक मासिक पत्रिका के प्रकाशन से जुड़े हुए हैं,तो  आकाशवाणी रांची से समाचार वाचन एवं उद्घोषक के रुप में भी जुड़ाव है। लेखन में आपकी विधा कविता ही है। 
सम्मान के रुप में गंगाप्रसाद कौशल पुरस्कार और कादमबिनी क्लब से पुरस्कृत हैं। ब्लाॅग पर लिखते हैं तो,विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा रेडियो से भी रचनाएं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज को कुछ देना है

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