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मातु शारदे! हंसवाहिनी
भक्तों को वर दे,
चले शुभ्र पथ सतत् निरंतर
मन निर्मल कर दे॥
वीणा बजे तेरा कर में भवानी
मधुर-मधुर स्वर से,
जिस स्वर से बह चले
प्रेम की गंगा घर-घर से॥
संस्कृति कला नैतिक मूल्यों को
रहे समर्पित मन,
निष्ठा की रहे सदा प्रतिष्ठा
हो जीवन धन्य॥
दया करो मां।द्वेष-विषमता
पीड़ा हो जग से दूर,
शांति समृद्धि बढ़े,न रहे
आतंकवाद अति क्रूर॥
भारत के जन-जन के मन के
भाव शुद्ध करो मां,
नेतृ-वर्ग से इस देश को
नहीं क्लेश हो मां॥
व्यर्थ न जाए युगपुरूषों का
त्याग और बलिदान,
फिर से इस भारत भूमि में
जन्मे पुरूष महान॥
हे विद्या बुद्धि की दात्री
क्लेश सकल हर ले,
मातु शारदे हंसवाहिनी
भक्तों को वर दे॥
चल शुभ्र पथ सतत निरंतर
मन निर्मल कर दे॥
#विजयकान्त द्विवेदी
परिचय : विजयकान्त द्विवेदी की जन्मतिथि ३१ मई १९५५ और जन्मस्थली बापू की कर्मभूमि चम्पारण (बिहार) है। मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के विजयकान्त जी की प्रारंभिक शिक्षा रामनगर(पश्चिम चम्पारण) में हुई है। तत्पश्चात स्नातक (बीए)बिहार विश्वविद्यालय से और हिन्दी साहित्य में एमए राजस्थान विवि से सेवा के दौरान ही किया। भारतीय वायुसेना से (एसएनसीओ) सेवानिवृत्ति के बाद नई मुम्बई में आपका स्थाई निवास है। किशोरावस्था से ही कविता रचना में अभिरुचि रही है। चम्पारण में तथा महाविद्यालयीन पत्रिका सहित अन्य पत्रिका में तब से ही रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। काव्य संग्रह ‘नए-पुराने राग’ दिल्ली से १९८४ में प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष लगाव और संप्रति से स्वतंत्र लेखन है।
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Sat Dec 9 , 2017
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