दास्तां-ए-इश्क़

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shirin bhavsar
उनसे  दिल लगाना ता-उम्र की ……मुसीबत हो गई,
आहें भरते रहने की अब तो हमें ……आदत हो गई।
मूंदकर पलकें उन्हें हमने अपना….खुदा माना,
सज़दे में उनके सिर झुका लिया… इबादत हो गई।
शीशे-सा दिल अपना अब हम…. सम्भालें कैसे,
जमीं पर जो पांव रखा उसने…
नजाकत हो गई।
बयां न कर सके हाल-ए-दिल…
अपना हम,
बुज़दिली ये हमारी जाने क्यों…
शराफत हो गई।
छुपाना चाहते थे जो राज़े दिल….
हम उनसे,
आँखों से हमारी ये कैसी…
शरारत हो गई।
सुनकर हाल-ए-दिल हमारा ‘शिरीन’
….अब तो
लोग कहने लगे हमसे,इश्क़ में…
शहादत हो गई॥

                                            #शिरीन भावसार

परिचय:शिरीन भावसार का जन्म नवम्बर १९७५ में तथा जन्मस्थान-इंदौर (म.प्र.) हैl आपने एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान) की शिक्षा रायपुर (छग) में ली है,और शादी के बाद वर्तमान में वहीँ निवासरत हैंl कार्यक्षेत्र की बात करें तो आप कला-शिल्प तथा लेखन में सक्रिय होकर सामाजिक क्षेत्र में दृष्टि बाधित संस्था और विशेष बच्चों की संस्था से जुड़ी हुए हैंl लेखन में आपकी विधा-नई कविता,छंदमुक्त कविता,मुक्तक एवं ग़ज़ल हैl कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं सहित वेबपत्रिका में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-अपने विचारों को दृढ़ता से रखना,सामाजिक मुद्दों को उठाना,मनोभाव की अभिव्यक्ति और आत्मसंतुष्टि हैl

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