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तेरे लबों की ख़ामोशी,
अक्सर हैरान करती है।
बिन कहे ही यह तो,
सब कुछ बयान करती है॥
ख़ामोश अल्फाज़ रहते मेरे,
निगाहें बात करती है।
अपनी मोहब्बत के किस्से,
ये दिन -रात पढ़ती है॥
हीर-रांझा नहीं है पर,
सच्चे आशिक हम भी हैं।
बे-हया नहीं है मुहब्बत अपनी,
धड़कनें यही कहती है॥
#वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,इसलिए लेखन में हुनरमंद हैं। साथ ही एमएससी और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए किया हुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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Thu Nov 23 , 2017
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