माता-पिता के गुजर जाने से,
घर को संभाल रही बेटियाँ।
कांधा देकर-अग्निदाह करके,
संस्कृति निभा रही बेटियाँ l
बेटों के बिना बेटा बन के,
लोगों को दिखला रही बेटियाँ।
वेशभूषा से पहचान मुश्किल,
कहते हैं कि बेटे हैं या बेटियाँ।
वाहन चलाने से डरती थी,
हवाई जहाज उड़ा रही बेटियाँ l
प्राकृतिक आपदाओं के समय,
लोगों की जान बचा रही बेटियाँ।
देश की सीमा-प्रहरी बन के,
दुश्मनों को दहाड़ रही है बेटियाँ।
कुशल राजनीतिज्ञ बनकर ये,
देश-प्रदेश को संभाल रही बेटियाँ l
भ्रूण हत्या,दहेज़,बलात्कार को,
रोकने का बीड़ा उठा रही है बेटियाँ।
देश-विदेश में प्रतिभागी बनकर,
भारत का नाम रोशन कर रही बेटियांl
`बेटी बचाओ` का संकल्प लो सभी,
दुनिया को ये संदेश दे रही है बेटियाँ।
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।
सुन्दर कविता