Read Time42 Second
सीफर से तो शुरु भयो,
पहाड़ जैसा पाय।
सम विषमाभाज अभाज,
संबंधी बन जाय॥
लाभ हानि के अंक में,
जीवन बना गणित।
आयु तो नित घट रही,
अनुभव जुड़ता मीत॥
गुणा-भाग दिन-रात से,
घर कोष्ठ-सा बंद।
शून्य सत्य ही आखरी,
यहि जीवन का अंत॥
मुट्ठी बाँधे आए थे,
हाथ पसारे जाय।
काम क्रोध मद लोभ से
जीवन लिया सजाय।।
ज्ञान दान नित दीजिए,
तज माया अभिमान।
परहित कारज भी करें,
कहते कवि मसान॥
#डाॅ. दशरथ मसानिया
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
December 25, 2017
इंसानियत जगा दीजिए
-
June 26, 2019
संसद में हिंदी का विरोध बेमायने
-
December 7, 2018
प्यार क्या होता
-
July 24, 2018
बाक़ी है
-
December 23, 2017
उड़ान बाकी है•••