देह

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sanjay sinha

चारपाई पर लेटी बुधिया साफ़-साफ़ देख रही है कि,अखबार बांचता दिन अब ऊंघने लगा है और दिन की लालिमा मानो रात की कालिमा में तेजी से समाती जा रही होl देखते-ही देखते अंधेरा तिर आता है…उसके आसपास और उसके अंदर भी,लगा जैसे कालिमा उसके जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई हो…एक ऐसा हिस्सा,जिससे चाहकर भी वह अलग नहीं हो सकतीl मन किसी व्याकुल पक्षी की तरह तड़प रहा है और अंदर की घुटन और चुभन ने बुधिया को हिलाकर रख दिया हैl नियति के क्रूर पंजे में फंसी-उलझी बुधिया की आत्मा हाहाकार कर उठती हैl तभी ‘ठक’ की आवाज़  ने चौंका दिया..l एक सिहरन-सी दौड़ गई उसके तन-मन मेंl पीछे मुड़कर देखा तो दीवार के पलस्तर टूटकर नीचे बिखरे पड़े थेl मां की तस्वीर भी खूंटी के साथ ही गिर पड़ी थी,जो मलबे के ढेर में दबे किसी निरीह मानव की तरह ही लग रही हैl बुधिया को पुराने दिन याद हो आए,जब मां की आंखों में वही निरीहता वह साक्षात् देखा करतीl
शाम को बाबू जब दारू के नशे में धुत् घर पहुंचता,तो मां की छोटी-सी गलती पर भी बरस पड़ता और पीटते-पीटते बेदम कर देताl एक बार जवान होती बुधिया के सामने उसके जालिम बाप ने उसकी मां को निर्वस्त्र कर ऐसा पीटा कि वह घंटों बेहोश पड़ी रहीl बुधिया डरी-सहमी-सी कोने में खड़ी  रहीl उसका मन कराह उठाl
बुधिया को याद है,उस दिन उसकी मां खेत गई हुई थी…धान की कटाई में,तभी ‘धड़ाक’ की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुला और उसका दारुखोर बाप अंदर दाखिल हुआl आते ही उसने अपनी सिंदूरी आंखें बुधिया के ऊपर ऐसे गड़ा दीं,मानों वह उसकी बेटी नहीं,महज़ एक देह होl ‘बाबू जी…’ बस इतना ही निकल पाया बुधिया की ज़ुबान सेl
‘आ…हां…..सुन,…बुधिया…’ वह जैसे आपे में आकर बोला-‘ई दारु की बोतल रख देl’
‘जी अच्छाl’ किसी मशीन की तरह बुधिया ने सिर हिलाया और दारु की बोतल अपने बाबू के हाथ से लेकर कोने में रख आईl उसकी आंखों में भय की रेखाएं खिंच आईं थीं,तभी बाबू की आवाज़ किसी हथौड़े की तरह सीधे उसे आकर लगी-‘बुधिया…उहां खड़े-खड़े का देख रही है…इहां आके बईठ….हमरे पास….आ…..आ…..’ बुधिया को तो जैसे काटो तो खून नहींl उसकी सांसें तेज़-तेज़ चलने लगीं,धौंकनी की तरहl उसका जी तो किया कि दरवाज़े से बाहर भाग जाए,लेकिन हिम्मत नहीं हुईl उसी पल बाबू की गरजदार आवाज़ पुनः गूंजी-‘बुधिया…..’ तो वह न चाहते हुए भी उस तरफ बढ़ चली,जहां उसका बाप खटिया पर पसरा हुआ थाl उसने झट बुधिया का हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया,जैसे वह उसकी जोरु होl
‘बाबू………..’ बुधिया के गले से एक घुटी-सी चीख निकली-‘ई का कर रहे हो बाबू ……l’
‘चोप्प….’बुधिया का बाप जोर से गरजा और एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके दाएं गाल पर दे माराl छटपटाकर रह गई बुधियाl उसमें विरोध की ज़रा भी ताक़त अब शेष नहीं बची थी,फिर भी बहेलिए के जाल में फंसे परिंदे की तरह छूटने की कई असफल कोशिशें करती रही बुधियाl अंततः थक-हारकर उसने हथियार डाल दिए,उस भूखे भेड़िए के आगेl वह चीखती रही,चिल्लाती रही,मगर यह सिलसिला थमा नहीं,चलता रहा लगातारl
मां को कई बार इस बाबत बताना चाहा था बुधिया ने,मगर बाबू की सुलगती-सिंदूरी आंखें उसके तन-मन में झुरझुरी-सी भर देतीं और उसपर खौफ पसरता चला जाताl भीतर-ही-भीतर घुट-घुटकर जी रही थी बुधियाl फिर एक दिन बाबू की मार से बेदम होकर बिस्तर पकड़ लिया था बुधिया की मां नेl महीनों बिस्तर पर पड़ी तड़पती रही थी वह,और उस दिन हठात उसके पेट में असहनीय दर्द उठाl तब बुधिया दौड़ पड़ी थी मंगरु चाचा के घरl मंगरु को झाड़-फ़ूंक में महारत हासिल थीl बुधिया से आने का आशय जानकार मंगरु ने पूछा था-‘तोहार बाबू कहां है ?’
‘पता नहीं चाचा’,इतना ही कह पाई थी बुधियाl
‘ठीक है,तुम चलो,हम आ रहे हैंl’ मंगरु ने कहा तो बुधिया उलटे पांव अपने झोंपड़े में वापस चली आई थीl थोड़ी ही देर में मंगरु भी आ गया,उसने आते ही झाड़-फ़ूंक का काम शुरू कर दिया,लेकिन बुधिया की मां की तबियत में कोई सुधार आने की बजाए दर्द बढ़ता गयाl मंगरु अपना काम करके चला गया और कह गया कि-‘मंतर का परभाव जईसे ही सुरु होगा,तुम्हारी माई का दरद भी कम हो जाएगा…..तू चिंता मत कर बुधिया….l’
बुधिया को लगा जैसे-मंगरु चाचा ठीक ही कह रहा हैl वह घंटों प्रतीक्षा करती रही,लेकिन न तो मंत्र का प्रभाव शुरू हुआ और न ही उसकी मां के दर्द में कमी आईl देखते-ही-देखते बुधिया की मां का सारा शरीर बर्फ की तरह ठंडा पड़ गयाl आंखें पथराई-सी बुधिया को ही देख रही थीं एक टक,मानो कुछ कहना चाह रहीं होंl तब फूट-फूटकर रोने लगी थी बुधिया और उसका बाप देर रात घर तो आया,लेकिन नशे में धुत्l
अगली सुबह किसी तरह कफ़न-दफ़न का इंतज़ाम  हुआ तो लाश घर से निकलीl
बुधिया के अतीत का तार टूटकर पुनः वर्तमान से जुड़ गयाl बाबू की ज़्यादतियों की वजह से उसका जीवन तबाह हो गयाl पता नहीं,वह कितनी बार मरती है,फिर जीती है…..सैकड़ों बार मर चुकी है वह,फिर भी ज़िंदा है….महज़ एक लाश बनकरl बाबू के प्रति उसका मन विद्रोह कर उठता है,लेकिन वह खुद को दबाती आ रही है,मगर आज उसने मन-ही-मन एक फैसला कर लिया हैl यहां से दूर भाग जाएगी वह….बहुत दूर….जहां बाबू की दृष्टि उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगीl
अगले दिन बुधिया मास्टरनी के यहां गई कि,वह अपने ऊपर हुई ज़्यादतियों की सारी कहानी उसे बता देगीl मास्टरनी का नाम कलावती था,मगर सारा गांव उसे `मास्टरनी` के नाम से ही जानता हैl कलावती गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती हैl बुधिया को भी उसने पढ़ाया थाl यह बात और है कि,बुधिया दो कक्षा से ज़्यादा पढ़ नहीं पाई थीl मास्टरनी के प्रति बुधिया के मन में आस्था तो थी ही,विश्वास भी थाl शायद इसी विश्वास के चलते वह अपनी व्यथा सुनाने वहां तक चल पड़ीl
‘क्या बात है बुधिया?…कुछ बोलो तो सही….जबसे आई हो,तब से रोए जा रही हो,आखिर बात क्या हो गई?’ मास्टरनी ने स्नेहपूर्वक पूछा तो बुधिया का गला भर आयाl उसके मुंह से अनायास ही निकला-‘मास्टरनी जी!’.
‘हां…हां …बताओ बुधिया….मैं वादा करती हूं,तुम्हारी मदद करुंगीl’ मास्टरनी ने कहा तो,बुधिया ने बताया-‘मास्टरनी जी…उसने हमको ख़राब किया…हमारे साथ गन्दा…..काम…..l’ सुनकर मास्टरनी की भौंहें तन गईंl वह बुधिया की बात बीच में ही काटकर बोली-‘किसने किया यह काम तुम्हारे साथ बुधिया?’
‘बाबू ने….’ और बुधिया सब कुछ सिलसिलेवार बताती चली गई मास्टरनी कोl मास्टरनी कलावती की आंखें फटी-की-फटी रह गईं और चेहरे पर आश्चर्य की लकीरें गहराती गईंl फिर सहज भाव से बोली-‘तुम्हारा बाप इंसान है या जानवर….उसे तो डूब मरना चाहिए चुल्लूभर पानी मेंl उसने अपनी बेटी को ख़राब किया,छी…..! खैर,तू चिंता मत कर बुधियाl तू आज शाम की गाड़ी से मेरे साथ शहर चल,वहां मेरी बेटी और दामाद रहते हैंl तू वहीं रहकर उनके काम करना,बच्चे संभालना,तुम्हें भरपेट खाना और कपड़ा मिलता रहेगा,वहां तू पूरी तरह सुरक्षित रहेगीl’
बुधिया का सिर मास्टरनी के प्रति कृतार्थ भाव से झुक गयाl नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरते  ही बुधिया को लगा,जैसे किसी नई दुनिया में आ गई होl सब कुछ अलग और अदभुत है यहांl ब्लू लाइन बस में बैठी वह गगनचुम्बी इमारतों को ऐसे निहारती रही,मानो कोई अजूबा होl
तभी मास्टरनी  ने एक बड़ी इमारत की तरफ इशारा करते हुए कहा-‘देख बुधिया….यहां औरत-मर्द सब एकसाथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम करते हैंl’
‘सच…!’ बुधिया को आश्चर्य हुआl जैसे उसका अल्हड़ व ग्रामीण मन पता नहीं क्या-क्या कयास लगाता रहाl बस एक झटके से रुकी तो,मास्टरनी के साथ वह वहीं उतर पड़ीl चंद क़दम के फासले तय करने के बाद दोनों एक विशाल व खूबसूरत कोठी के सामने पहुंचेl फिर एक बड़े से फाटक के अंदर बुधिया मास्टरनी के साथ ही दाखिल हो गईl बुधिया की आंखें अंदर की साज-सज्जा देखकर जैसे फटी-की-फटी रह गईंl स्वर्ग से कम नहीं लगा वह घर उसकोl
मास्टरनी ने एक आधुनिक महिला से बुधिया का परिचय करवाया और कुछ ज़रूरी हिदायत देकर शाम की गाड़ी से ही वह गांव वापस लौट गईl
शहर की आबो-हवा में खुद को सुरक्षित समझने लगी है बुधियाl कोठी के चारों तरफ खड़ी कंक्रीट की मज़बूत दीवारें और लोहे की सलाखें उसे अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करतीं हैं,मानों बाहर की बदनीयत हवाएं उसे छूने की ज़ुर्रत नहीं कर पाएंगींl इसी बेफिक्री के आलम से गुज़रती बुधिया का भ्रम रेत के घरौंदे की तरह भरभराकर तब टूटा,जब उसे उस दिन कोठी के मालिक हरिशंकर बाबू ने मौका देखकर अपने कमरे में बुलाया और देखते-ही-देखते भेड़िया बन गया वहl गिद्ध की तरह टूट पड़ा वह उस परl बुधिया को अपना दारुखोर बाप याद हो आयाl नशे में धुत्त…सिंदूरी आंखें और उसमें कुलबुलाते वासना के असंख्य कीटाणुl कहां बचा पाई बुधिया उस दिन भी खुद कोl
कांक्रीट की दीवारें और लोहे की मज़बूत सलाखों को अभेद्य सुरक्षा घेरा मान बैठी बुधिया को अब वह छलावा लगने लगा और फिर एक रात उसने देखा कि नितिन और श्वेता अपने कमरे में अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपटे बेजा हरकतें कर रहे हैंl टीवी पर किसी गंदी फिल्म के दृश्य चल रहे हैंl
‘….छी…….ये सगे भाई-बहन हैं या…..l’ बुदबुदाती हुई अपने कमरे में चली गई बुधियाl
सुबह हरिशंकर बाबू की पत्नी अपनी बड़ी बेटी को समझा रही थीं-‘देख….कॉलेज जाते वक़्त सावधान रहा कर,दिल्ली में हर दिन लड़कियों के साथ छेड़छाड़ व बलात्कार की घटनाएं घट रहीं हैंl तू जब-जब निकलती है,मेरा मन घबराता रहता हैl पता नहीं,क्या हो गया है इस शहर कोl’
मन-ही-मन हंस पड़ती है बुधिया छोटी मालकिन की बातों परl सारे रिश्ते- नाते बेमानी लगने लगते हैं बुधिया कोl जिस घर को,जिस शहर को वह अपने लिए महफूज़ समझ रही थी,वही उसे असुरक्षित लगने लगा हैl हर पल असुक्षा की भावना ने जीना हराम कर दिया है बुधिया काl उसके सामने तलवार की तरह एक प्रश्न लटकता-सा लगता है कि,क्या औरत का मतलब देह है,सिर्फ देह…!

                                                                                #संजय सिन्हा 

परिचय: संजय सिन्हा की जन्मतिथि-१९ जुलाई १९८४ और जन्म स्थान-पटना(बिहार) हैl वर्तमान में आपका निवास आसनसोल(पश्चिम बंगाल) के बर्नपुर में राधानगर रोड पर हैl आसनसोल शहर से रिश्ता  रखने वाले श्री सिन्हा ने स्नातक(अर्थशास्त्र) किया हुआ है और कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-लेखन और अभिनय के जरिए पूरा भारत ही हैl आप कहानी,समीक्षा,लघुकथा और आलेख लिखते हैंl प्रकाशन में आपके खाते में लघुकथा संकलन-‘रोशनी और अंधेरा’,ग़ज़ल संकलन-‘गुलदस्ता’ का हैl राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में ढेरों रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैंl बात सम्मान की करें तो आपको पत्रकारिता सम्मान-२०१२,साहित्य शिरोमणि पुरस्कार- २०१३ सहित साहित्यश्री पुरस्कार-२०१३,जन जागरण पुरस्कार-२०१३ आदि मिले हैंl आप ब्लॉग पर भी लिखने में सक्रिय हैंl उपलब्धि यही है कि,फिल्मों में अभिनय के साथ ही समाजसेवा,समाचार वाचन एवं फिल्म निर्माण करते हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-समाज को जागरुक करना चाहते हैl 

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।