विनय

0 0
Read Time3 Minute, 43 Second
vijaykant
हो स्वामी सखा  समर्थ  प्रभु
फिर भी  लगी नाव किनारे नहीं..?
भँवर से  निकालो मेरी नौका
तुझे छोड़ और है सहारे नहीं है..।
तुम तो करुणाकर  हो प्रभुवर
शरणागत जन के तारक  हो।
सृष्टि  के सर्वस्व हो तुम
सृजक पालक संहारक  हो॥
तुम ब्रह्मा बन करते रचना
तुम ही विष्णु  करते जग पालन।
तुम रूद्र बन संहारक हो
तुम अखिल भुवन करते धारण॥
सब सन्तों ने है किया वर्णन
तुम परम दिव्य प्रभुवर  पावन।
तुम आदि मध्य अन्त रहित
हे जगतवंद्य हरि मनभावन॥
द्रोपदी की रक्षा किये प्रभु
गीध गणिका अहिल्या तार दिए।
तारे तुम सधन कसाई को
प्रह्लाद  का रक्षण भार लिए॥
ध्रुव को प्रभु उन्नत लोक दिए,
सब भगतों के हरि दुख हारे।
यह पतित अधम भी है आया
हे कृपा-सिन्धु तेरे द्वारे॥
जिनका हम नाम गिनाए हैं
हैं असंख्य कोटि उनसे नीचे।
इस वन-प्रसून की चाह है पर
प्रभु-कृपा-जल-बून्द इसे सींचे॥
तुम परम अलौकिक अनुपम पारस
हम लौह खण्ड हैं सड़े-गले।
हमको भी स्वर्ण  बना दो तुम
करुणाकर कृपा करो हरे॥
जगत सरोवर में भगवन
गजराज सरीखा डूब रहा।
आरत की रक्षा करो प्रभु
अब हमें नहीं कुछ सूझ रहा॥
प्रिय अर्जुन के तेरे पराजय पर
सौ कौरव मौज मनाएंगे।
क्या तुम प्रसन्न रह पाओगे
जन करूणा पर पश्न उठाएंगे॥
हे राम रमो मेरे मन में तुम
दुनिया के भँवर में न अटकाओ।
हो शैशव में कोई  चूक हुई
उसे ध्यान तुम मत लाओ॥
लहरों से निकालो मेरी नौका
हे दयासिन्धु किनारा मिले।
हो जाए सफल यह जीवन
मन में भक्ति के कमल खिले॥
इस दास की आस करें पूरे
हे अखिलेश्वर जय के स्वामी।
तुम तो त्रिभुवन के सब जानो
हे विश्वेश्वर  प्रभु अन्तर्यामी॥
                                                             #विजयकान्त द्विवेदी 
परिचय : विजयकान्त द्विवेदी की जन्मतिथि ३१ मई १९५५ और जन्मस्थली बापू की कर्मभूमि चम्पारण (बिहार) है। मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के विजयकान्त जी की प्रारंभिक शिक्षा रामनगर(पश्चिम चम्पारण) में हुई है। तत्पश्चात स्नातक (बीए)बिहार विश्वविद्यालय से और हिन्दी साहित्य में एमए राजस्थान विवि से सेवा के दौरान ही किया। भारतीय वायुसेना से (एसएनसीओ) सेवानिवृत्ति के बाद नई  मुम्बई में आपका स्थाई निवास है। किशोरावस्था से ही कविता रचना में अभिरुचि रही है। चम्पारण में तथा महाविद्यालयीन पत्रिका सहित अन्य पत्रिका में तब से ही रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। काव्य संग्रह  ‘नए-पुराने राग’ दिल्ली से १९८४ में प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष लगाव और संप्रति से स्वतंत्र लेखन है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

हर साँस तुम्हारे नाम लिखूं

Wed Oct 4 , 2017
तेरी नशीली आँखों को शराब लिखूंl पुराने खतों को महकता गुलाब लिखूंll झुका दे अपनी पलकें मेरी बांहों में। आ मेरी हर साँस तुम्हारे नाम लिखूंll मेरी रुह में उतरकर कर दे मुझ पर इनायत। बअंदाज दैर में बैठ के तुझे महताब लिखूंll मेरे दिल की हर कु में है […]

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।