मैं जा रही हूँ पापा,
आपके ऊपर कर्ज का भार
तिलक और दहेज का भार,
खेती और महाजन का भार
माँ के ईलाज का भार,
इस हाल में
मैं क्या करूं?
मैं लड़की हूँ,
बेबस और लाचार हूँ
बिन पंख पक्षी के समान,
मैं जा रही हूँ पापाl
सड़क पर चलते भय,
घर में परिजन-पुरजन का भय
बाहर `रोड रोमियो` का भय,
उस पर मैं अबला और असहाय
मैं जा रही हूँ पापाl
आपको अपने हाल पर छोड़कर,
माँ का आँचल और ममत्व तोड़कर
तुम्हारी आहट और चौखट छोड़कर,
तुम्हारी बगिया-कुटिया छोड़कर
तुम्हारे दिलो-दिमाग से,
खेत और खलिहान से
घर और परिवार से,
मैं जा रही हूँ पापाl
बहुत………….दूर,
जहाँ से फिर नहीं लौटकर आऊँगी
क्योंकि,
वहाँ से न कोई आया है
न आता है और नहीं आएगा,
मैं जा रही हूँ पापाl
दूर……….बहुत दूर…ll
#दुर्गानंद यादव
परिचय: दुर्गानंद यादव बिहार राज्य के झंझारपुर शहर से हैंl
आपकी जन्मतिथि-१९ फरवरी १९८१ तथा जन्मस्थान-खुरसाहा(मधुबनी)हैl वर्तमान में शिक्षा-शोधार्थी होकर पेशे से शिक्षक हैंl सामाजिक क्षेत्र में आप समाजसेवा में सक्रिय होने के साथ ही कविता और कथा साहित्य भी लिखते हैंl
लेखन का उद्देश्य-जनचेतना,सामाजिक और शैक्षणिक संस्थानों में अराजकता सहित उन विविध विषयों पर लिखना है,जो मन को व्यथित करता हो।