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कल रात तुम्हारा चन्दा
आया था मेरे पास॥
कहता था,
नहीं गुजारा
बड़े-बड़े
शहरों में अब,
जितना चढ़ता
ऊपर मैं
उतना छोटा
होता नभ।
देखी नहीं चांदनी ने
हरी-भरी कहीं घास॥
गगनचुम्बी,
अट्टालिका पर
चढ़-चढ़कर
थक जाता हूं,
स्याह साँपिनि
सड़कों पर
चल-चलकर,
थक जाता हूं।
कभी नहीं भर पाता हूं
रुककर पूरी साँस॥
पिजन-होल
मकान बने हैं,
पंछी वत
रहता है मानव,
न बोले
न बातें करता,
चुप्पी का
बनता है दानव।
इकलेपन में घुलता है
बना है उसका दास॥
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
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Mon Aug 21 , 2017
निर्मलकुमार पाटोदी….. वैश्विक नगरी को हिन्दी अखरी….आज के बिजनेस स्टैंडर्ड में विश्लेषणात्मक रिपोर्ट पढ़कर विचार आया कि,हिन्दी-कन्नड़ को लेकर जो दु:खद भाषाई विवाद उभरा है,उसका नेतृत्व करने वालों की भाषाई समझ भटकी हुई थी। पूरी रिपोर्ट का विश्लेषण भी ठीक दिशा में नहीं है। रिपोर्ट के साथ चित्र में जो साइन बोर्ड […]