हर एक बात तुम्हारी अदा-सी लगती है।
तुम्हारे बिन ये मोहब्बत सज़ा- सी लगती है॥
तुम्हारी ज़ुल्फ़ जो बिखरे घटा- सी लगती है।
समेट लो जो इसे ये कज़ा-सी लगती है॥
रहा है मेरी मां का साया, इसलिए हर पल।
हर एक बद्दुआ मुझको दुआ- सी लगती है॥
कहाँ है चैन उसे,फिर न नींद आँखों में।
वो जिसके हाथ में रँगे हिना- सी लगती है॥
बहुत की कल्पना ने दिल लगाने की कोशिश।
मगर ये दुनिया ही अब बेवफा- सी लगती है।
परिचय : कल्पना गागड़ा हिमाचल राज्य के शिमला में रहती हैं। पेशे से आप सरकारी शिक्षा संचालनालय में अधीक्षक(वर्ग २)हैं। लिखने की वजह शौक है।