पग-पग पर वो डरती है….

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kamal
राखी का त्यौहार मनाएं,
भाई-बहिन की शुचिता पर हम
लम्बे-लम्बे गीत सुनाएं॥
राखी का त्यौहार मनाएं…।
क्या वो किसी की बहिन नहीं,
जो तेजाबों से जलती है।
उसकी प्यारी भोली सूरत क्यों
खल नयनों को खलती है॥
देहरी से बाहर आते ही क्यों,
पग-पग पर वो डरती है।
साए की भाँति लम्पट नजर
क्यों पीछा उसका करती है॥
बगुला भक्तों की कालिख से
क्यों पल्लू उसका काला हो।
सोचो उसकी मनःस्थिति जब
भक्षक रखवाला हो॥
कुसुम कली कहते हैं उसको,
खुद कांटे बन जाते हैं।
उसके पथ के तीक्ष्ण नुकीले
दारुण भाटे बन जाते है॥
बना निर्भया रात-रात भर ज्योति
खूब जलाएंगे।
ध्वनि मत समवेत सुरों से निर्भया फंड बनाएँगे॥
छोड़ो इन झूठी बातों को,
अपनी बहिन से राखी बंधवाएं।
राखी का त्यौहार मनाएं,
राखी का त्यौहार मनाएं…॥
                                                                 #कमल कान्त शर्मा
परिचय : कमल कान्त शर्मा पेशे से वरिष्ठ अध्यापक हैं। आपका निवास राजस्थान के ग्राम छापुड़ा कलाँ(जिला जयपुर) में है। आप रचनाधर्मी हैं और रावण ( दूसरा पहलू) खण्डकाव्य का लेखन जारी है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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