Read Time2 Minute, 2 Second
राधा और कृष्ण
दोनों ने प्रीत की,
कृष्ण ने कर्तव्य निभाए
सबके प्रति
केवल राधा को ही छोड़ दिया।
फिर भी राधा कृष्ण को
कभी विस्मृत नहीं कर पाई,
कितना अंतर था दोनों की
प्रीत में।
कृष्ण के लिए
कर्म पहले था प्रेम बाद में,और
राधा के लिए तो
प्रेम ही कर्म था।
मेरी दृष्टि में
राधा ने ही कर्म को जिया,
कृष्ण के आदर्श को जिया
स्वयं कृष्ण को जिया,
ऐसा निश्छल प्रेम
कोई वेदना
उलाहना
कोई अपेक्षा नहीं,
सिर्फ अपना कर्म किया
प्रेम किया
इतिहास ने उस प्रेम को
कितना सम्मान दिया,
मगर फिर राधा का क्या हुआ
कहाँ गई
कैसे जीवित रही
कोई नहीं जानता।
है कृष्ण
एक प्रश्न पूछूं तुमसे!
राधा जैसी
निष्काम कर्मयोगी का
ऐसा अंत
क्या तुम्हें अभीष्ट था?
फिर क्यों न सुध ली
क्या उस प्रेम का तुम
मोल चुका सके
सामीप्य पा सके ?
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
Post Views:
790
Tue Aug 8 , 2017
राखी पर्व महान है,बहन लुटाती प्यार। वह धागे से बांधती, रक्षा सूत्र अपार॥ रक्षा सूत्र अपार, सजाकर सुन्दर थाली। होते भाई प्रसन्न,लगे न जेब हो खाली॥ कह बिनोद कविराय, दिखे बत्तीसी झाँखी। खुले हृदय के द्वार, बहन जो बाँधे राखी॥ […]