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कि अब नहीं उड़ती धूल मेरी गली में,
नहीं गूंजता बच्चों का शोर मेरी गली में।
न कोई कुल्फी वाला,और न चाट वाला,
अब कोई नहीं आता जादू दिखाने वाला।
अब नहीं खेलते बच्चे रेस टीप गिल्ली, डंडा भौंरा बॉटी,
अब नहीं दिखते बच्चे लोटते धूल में और लपेटे माटी।
अब नहीं मिटाते पैर से बच्चे किसी गुड़िया के बनाए घरघुंदिए को,
बहती बरसाती पानी में छप-छपकर चलते बच्चे।
कागज की नाव चलाते हवाई जहाज उड़ाते,
एक-दूसरे की कमीज पकड़े रेलगाडी चलाते।
मुँह पर हथेली रख कु…की आवाज लगाते,
नहीं दिखते मेरी गली में।
सोचता हूं जमाना अब कितना
बदल रहा है,
देश डिजिटली मजबूत हो रहा है,
या इंसान फिजिकली कमजोर।
बचपन कैद हो रहा है टीवी और मोबाईल में,
संवाद बंद हो रहे फेसबुक-वाट्सअप के प्रोफाईल में।
बंद हो गए रामधुन,गीता और रामायण,
यत्र-तत्र सर्वत्र डीजे का शोर और पॉप रेप का गायन॥
गुम होती भारतीय संस्कृति और सभ्यता को बचा लो,
फिर से वही शोर गुंजा दो मेरी गली में॥
#सुरेन्द्र अग्निहोत्री ‘आगी’
परिचय: सुरेन्द्र अग्निहोत्री ‘आगी’ ने बी.काम.और डी.एड. के साथ ही एम.ए(हिन्दी तथा इतिहास) भी किया है। १९६२ में ६ जुलाई को जन्मे और पढ़ाई के बाद शिक्षक बने। आप छत्तीसगढ़ के जिला महासमुन्द में निवास करते हैं। छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषा में आपकी २ किताब शीघ्र ही छपकर आने वाली हैं।
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