
और मत सोचो,
क्या सोच-सोचकर
देखो,
दाना चुगते-चुगते भी
उस पेड़ की हर
शाख से प्रेम है इनको,
जहाँ तिनका-तिनका जोड़
घोंसला बनाना
सीखा था इन्होंनेl
उन हवाओं से भी
प्रेम है इनको,
जिन्होंने
गिराए थे इनके पहले
आशियाने..
बस माँग ली थी
माफी,
और इनके परों को
आसमान की ओर उठा दिया था..
इतने भर से ही
विश्वस्त हैं ये
तुम भी भरोसा कर
लो..
भुला दो सारे
विषाद,
बिसरा दो सारे
तुम बाध्य नहीं हो,
बस एक बार
अपनी कर्मधूली
लगाकर देखो मस्तक पर,
जैसे चिड़िया
चोंच में भर लाती है
बुझा लेती है
जन्मों की प्यासl
नहीं बाँचा
उसने किसी प्रेम पोथी
को,
कोई प्रेम
व्याकरण भी नहीं सीखाl
चिड़िया की नईं
फुनगियों पर
फुदक लेने से
और बारिश के
दिन
पेड़ का थोड़ा
प्रेम की
अभिव्यक्ति छू जाती है
दोनों के तन-मन कोl
तुम भी एक बार
जीवन-मृत्यु के,
इस अमृत तत्व को
चखकर तो देखो,
एक बार प्रेम
करके देखो
अपनी जन्मधूली से…ll
#अंजू जिंदल
परिचय : श्रीमती अंजू जिंदल का नाता पंजाब राज्य भटिंडा से हैl आपकी शिक्षा बीएससी और बीएड हैl आप बैंक कर्मचारी होकर लेखन में सक्रिय हैंl प्रकाशित साझा संकलन में-कुछ यूँ बोले अहसास,एहसास की दहलीज़ परऔर खनक आखन की आदि हैl