याद सजाए बैठा हूँ..

0 0
Read Time3 Minute, 56 Second
anil anvar
मैं मन में तेरी याद सजाए बैठा हूँ,
तू भूल गई मुझको तो कोई बात नहीं।
तेरी पीड़ा निज मन मंदिर में स्थापित कर,
करता हूँ जाने कब से नित तेरा पूजन
नयनों के जल का अर्घ्य,हृदय प्रतिमा के पुष्प,
विरहाग्नि की सुलगा धूप,दुःखों का घिस चंदन
प्राणों की आरती ज्योति जगाए बैठा हूँ,
तुझको यह मेरी प्रेम तपस्या ज्ञात नहीं।
बीता है जाने कितना लम्बा अंतराल,
जब मैंने तुझको,तूने मुझको देखा था
तू नयनों से पढ़ सकी न मैं मुख से बोला,
इस प्रेम कथा में मूक व्यथा का लेखा था
अनजानी-सी इक आस लगाए बैठा हूँ,
माना अब सम्भव तेरा मेरा साथ नहीं।
मन की बातें रह जाती हैं मन ही मन में,
ऐसा भी अक्सर हो जाता है जीवन में
मैंने पीड़ा गीतों में सार्वजनिक कर दी,
तू रही लाज के औ’ समाज के बंधन में
यह प्रेम सफल है या असफल मालूम नहीं,
जग समझेगा तेरे मेरे जज़्बात नहीं।
मैं मन में तेरी याद सजाए बैठा हूँ,
तू भूल गई मुझको तो कोई बात नहीं॥
                                                                                                        #अनिल अनवर
परिचय: अनिल अनवर राजस्थान राज्य के जोधपुर की व्यास कॉलोनी में रहते हैं। जन्म २० फरवरी १९५३ में सीतापुर में हुआ है। आपका पैतृक ग्राम-मुंशी दरियाव लाल का पुरवा (सुल्तानपुर)है।
शिक्षा -बी.एस-सी. (कानपुर) के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग डिप्लोमा (बैंगलोर) है। आपने भारतीय वायु सेना में इक्कीस वर्ष तक सेवाएँ दी और अब साहित्य में योगदान जारी है। १९९३ में वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद उस्ताद(काव्य गुरु) स्व. प्रो. प्रेमशंकर श्रीवास्तव ‘शंकर’ की प्रेरणा व आशीर्वाद से साहित्य सृजन में आए,और उनके ही शुभाशीष से एक ग़ैर व्यावसायिक पत्रिका का प्रकाशन-सम्पादन आरम्भ किया। २०१५ तक इसके 79 अंकों के माध्यम से देश के हज़ारों साहित्यकारों व साहित्यप्रेमियों से आपका परिचय हुआ। कई साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं-संकलनों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुईं हैं। संगोष्ठियों तथा सेमिनारों में भागीदारी सहित कई काव्य आयोजन भी किए। कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा रेडियो-टी.वी. के विभिन्न स्टेशनों-चैनलों पर काव्यपाठ भी करते रहे हैं। आपने बांग्ला,गुजराती एवं पंजाबी रचनाओं के हिन्दी में अनुवाद भी किए हैं। प्रकाशित पुस्तकों में ‘आस्था के गीत’, ‘गुलशन’ मजमूआ-ए-नज़्म, ‘विमल करो मन मेरा’ आदि आपके नाम हैं।
अब तक अनेक पुस्तकों व स्मारिकाओं का सम्पादन-प्रकाशन भी कर चुके हैं।
अनेक सम्मान व पुरस्कार पाए हैं पर आप उनका उल्लेख करना उचित नहीं मानते हैं। स्थानीय व बाहर की कुछ साहित्यिक संस्थाओं से सक्रिय जुड़ाव भी है। सम्प्रति में स्वतंत्र लेखन-हिन्दी- उर्दू में पद्य व गद्य की अनेक विधाओं में लेखन जारी है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

बेटी की पुकार

Sat Jul 29 , 2017
गूँज उठी कानों में, अजन्मी बेटी की आवाज। एक बार तो बतादो ना, मुझको मारने का राज॥ क्या? खता हुई मुझसे, या हो गई मुझसे नादानी। अपने होकर क्यों? कर रहे, हो मेरी खतम कहानी। हाथ जोड़ विनती करती, सुन लो दिल की आवाज। गूंज उठा कानों में……॥ मैं तुम्हारा […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।