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मैं मन में तेरी याद सजाए बैठा हूँ,
तू भूल गई मुझको तो कोई बात नहीं।
तेरी पीड़ा निज मन मंदिर में स्थापित कर,
करता हूँ जाने कब से नित तेरा पूजन
नयनों के जल का अर्घ्य,हृदय प्रतिमा के पुष्प,
विरहाग्नि की सुलगा धूप,दुःखों का घिस चंदन
प्राणों की आरती ज्योति जगाए बैठा हूँ,
तुझको यह मेरी प्रेम तपस्या ज्ञात नहीं।
बीता है जाने कितना लम्बा अंतराल,
जब मैंने तुझको,तूने मुझको देखा था
तू नयनों से पढ़ सकी न मैं मुख से बोला,
इस प्रेम कथा में मूक व्यथा का लेखा था
अनजानी-सी इक आस लगाए बैठा हूँ,
माना अब सम्भव तेरा मेरा साथ नहीं।
मन की बातें रह जाती हैं मन ही मन में,
ऐसा भी अक्सर हो जाता है जीवन में
मैंने पीड़ा गीतों में सार्वजनिक कर दी,
तू रही लाज के औ’ समाज के बंधन में
यह प्रेम सफल है या असफल मालूम नहीं,
जग समझेगा तेरे मेरे जज़्बात नहीं।
मैं मन में तेरी याद सजाए बैठा हूँ,
तू भूल गई मुझको तो कोई बात नहीं॥
#अनिल अनवर
परिचय: अनिल अनवर राजस्थान राज्य के जोधपुर की व्यास कॉलोनी में रहते हैं। जन्म २० फरवरी १९५३ में सीतापुर में हुआ है। आपका पैतृक ग्राम-मुंशी दरियाव लाल का पुरवा (सुल्तानपुर)है।
शिक्षा -बी.एस-सी. (कानपुर) के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग डिप्लोमा (बैंगलोर) है। आपने भारतीय वायु सेना में इक्कीस वर्ष तक सेवाएँ दी और अब साहित्य में योगदान जारी है। १९९३ में वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद उस्ताद(काव्य गुरु) स्व. प्रो. प्रेमशंकर श्रीवास्तव ‘शंकर’ की प्रेरणा व आशीर्वाद से साहित्य सृजन में आए,और उनके ही शुभाशीष से एक ग़ैर व्यावसायिक पत्रिका का प्रकाशन-सम्पादन आरम्भ किया। २०१५ तक इसके 79 अंकों के माध्यम से देश के हज़ारों साहित्यकारों व साहित्यप्रेमियों से आपका परिचय हुआ। कई साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं-संकलनों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुईं हैं। संगोष्ठियों तथा सेमिनारों में भागीदारी सहित कई काव्य आयोजन भी किए। कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा रेडियो-टी.वी. के विभिन्न स्टेशनों-चैनलों पर काव्यपाठ भी करते रहे हैं। आपने बांग्ला,गुजराती एवं पंजाबी रचनाओं के हिन्दी में अनुवाद भी किए हैं। प्रकाशित पुस्तकों में ‘आस्था के गीत’, ‘गुलशन’ मजमूआ-ए-नज़्म, ‘विमल करो मन मेरा’ आदि आपके नाम हैं।
अब तक अनेक पुस्तकों व स्मारिकाओं का सम्पादन-प्रकाशन भी कर चुके हैं।
अनेक सम्मान व पुरस्कार पाए हैं पर आप उनका उल्लेख करना उचित नहीं मानते हैं। स्थानीय व बाहर की कुछ साहित्यिक संस्थाओं से सक्रिय जुड़ाव भी है। सम्प्रति में स्वतंत्र लेखन-हिन्दी- उर्दू में पद्य व गद्य की अनेक विधाओं में लेखन जारी है।
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