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परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है,इसमें ढल जाओ,
बदलते परिवेश की जरूरत,हो तो बदल जाओ।
कितनी भी लम्बी चाहे,
हो रात काली गहरी..
छँट जाएगा अंधेरा,
बन सूर्य-से निकल जाओ।
पानी की तरह जीवन,
है यारों मानो अपना..
कोई हो रंग चाहे,
हर रंग में घुल जाओ।
आशा है फ़िर निराशा,
यही चक्र चलता रहता..
आशा के दीप बनकर,
हर मोड़ पे जल जाओ।
पतझड़ में झड़ें तरुवर,सावन में हरे होंगे,
हरियाली छाएगी फ़िर,पतझड़ में सम्भल जाओ॥
#कैलाश भावसार
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