खिलती कली का कातिल

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rajeshwari
आज फिर एक खिलती कली
पाई कचरे  के ढेर पर,
चीत्कार कर उठा ह्दय
तड़प उठी ममता भी।
रक्त उबल आया आंखों में,
उस बेदर्द ह्दयहीन जननी पर
हजारों सवाल खड़े  हो गए
उस मासूम की आंखों में।
जब तुम्हें नहीं थी मेरी अभिलाषा,
क्यों तुम मुझ को लाई जग में
नाल तक नहीं कटी थी मेरी,
और फेंक गई कूड़े में।
हे मेरी जननी,
मैं तो उस परमात्मा का
दिया तोहफा हूँ,
जैसे तुम हो,वैसी मैं हूँ।
तेरे अंग का टुकड़ा हूँ मैं,
तेरे ही रक्त से सींची हुई
तेरी परछाई हूँ मैं,
हाथ नहीं काँपे तेरे।
हदय मैं नहीं उठी ज्वाला कोई,
कैसे छोड़ पाई होगी मुझको
बेटे-बेटी में भेद किया तूने,
या कोई अनब्याही माँ थी?
तुझे नहीं पालना था मुझे,
तो किसी और को दे देती
बिन संतान वाली माँ मुझे,
पाकर ख़ुशी से झोली भर लेती।
क्यों फेंका माँ मुझको कचरे में,
आज भी एक ज्वलंत प्रश्न
क्यों बेटे-बेटी में भेद,
करता है ये समाज॥

                                                                                                    #श्रीमती राजेश्वरी जोशी

परिचय : श्रीमती राजेश्वरी जोशी का निवास अजमेर (राजस्थान) में है। आप लेखन में मन के भावों को अधिक उकेरती हैं,और तनुश्री नाम से लिखती हैं।

matruadmin

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