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याद किया फिर सावन में,
उस अलबेले साजन ने।
मंद पवन के झोंकों में,
इन काले-काले मेघों ने।
इन रिमझिम-रिमझिम बूँदों में,
इन खिलते-खिलते फूलों ने।
यह सुगंध तन श्रंगार भरी,
यह सजनी साजन द्वार खड़ी।
मौसम की यह अंगड़ाई,
देख सखी सावन आई।
#विवेक दुबे
परिचय : दवा व्यवसाय के साथ ही विवेक दुबे अच्छा लेखन भी करने में सक्रिय हैं। स्नातकोत्तर और आयुर्वेद रत्न होकर आप रायसेन(मध्यप्रदेश) में रहते हैं। आपको लेखनी की बदौलत २०१२ में ‘युवा सृजन धर्मिता अलंकरण’ प्राप्त हुआ है। निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन जारी है। लेखन आपकी विरासत है,क्योंकि पिता बद्री प्रसाद दुबे कवि हैं। उनसे प्रेरणा पाकर कलम थामी जो काम के साथ शौक के रुप में चल रही है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं।
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Thu Jul 20 , 2017
चलो सजन कहीं दूर चलें, पलकों में मीठा स्वप्न पले मन-मयूर हर्षित हो जाए, कोयल मीठा गीत सुनाए। नील गगन की छाँव तले, पलकों में मीठा स्वप्न पले। धरा-गगन मिल जाते हों, सब राग प्रेम का गाते हों। अधरों पर केवल मुस्कान खिले, पलकों में मीठा स्वप्न पले। राग-द्वेष का […]