दास्तां-ए-तरक्की

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sunil patel
ऐसे ही नहीं ये तरक्की आई है,
तीज-त्यौहार पर हमने रुखी-सुखी खाई है।
घर से अपने दूर रहते थे,
माँ-बाप की नींदे बिसराई है।
मीलों चले हैं इन रास्तों पर,
दिल पर कई चोंटे भी खाई है।
रिश्ते-नातों से तौबा की है साहब,
कई रातें भी जागकर बिताई है।
बहुत भटके हैं अंधेरों में हम,
तब जा के ये मंजिल पाई है।
चमकना है तो ला प्रयासों में तेज़ी,
उठ अब तेरी बारी जो आई है।
याद रखना मुश्किलो में भी ये,
बिना घिसे किस हीरे ने चमक पाई है।
                                                                                          #सुनील रमेशचंद्र पटेल
परिचय : सुनील रमेशचंद्र पटेल  इंदौर(मध्यप्रदेश ) में बंगाली कॉलोनी में रहते हैंl आपको  काव्य विधा से बहुत लगाव हैl उम्र 23 वर्ष है और वर्तमान में पत्रकारिता पढ़ रहे हैंl 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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