कविता- बड़ा बनने की कोशिश में मैं

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जीवन के उत्तरार्द्ध पर उतरते हुए
अपनों-परायों के बीच खेलते हुए
अब मुझमें भी बड़ा बनने की इच्छा जाग रही है
यह हुनर सीखना भी आसान नहीं
चूंकि मुझे सीखना था इसलिए गुरु भी ढूंढ लिए
आप सोच रहे होंगे
इसके लिए मुझे ज्यादा भटकना पड़ा
अरे नहीं जी, सब मेरे पास के थे
कई तो ऐसे भी थे जिनके साथ
आधे से ज्यादा जीवन गुजार दिए
अच्छा सिखाया उन्होंने
लेकिन माफ कीजिएगा
मैं उनकी सीख नहीं मान सकता
क्योंकि मैं इंसान बने रहना चाहता हूं
ईश्वर ने आखिर
कुछ सोच समझकर ही तो
इंसान बनाकर भेजा होगा
जब भी मन भटकता है
अपने आसपास टहल रही
चींटी को देख लेता हूं
और समझ लेता हूं
मसले तो सभी जाएंगे
फिर गुमान किस बात का।

अर्द्धेन्दु भूषण

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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