कविता – रामलला मंदिर प्राण प्रतिष्ठा

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हे प्राण प्रतिष्ठा, न देख तू रास्ता, पा ले जीवन का सार,
सप्त मोक्षदायनी नागरियों में प्रथम है अयोध्या,
सरयू नदी का तट और प्रधान देवता है हनुमंत भैया।
जिनकी तीन माताएँ कौशल्या, कैकई और सुमित्रा मैया,
रामलला जो हैं, हमारे तारणहार जीवन के खवैया।
हे प्राण प्रतिष्ठा, न देख तू रास्ता, पा ले जीवन का सार……

जन्म हुआ रामलला का, कुल को जिन्होंने तारा,
दर्शन से जिनके मिट जाएँ, शोक, संताप सारा।
अयोध्या सरयू तट पर राम का मंदिर बना अद्भुत न्यारा,
बड़े सौभाग्य से शाताब्दियों बाद प्राण प्रतिष्ठा का उद्यम है प्यारा ।
हे प्राण प्रतिष्ठा, न देख तू रास्ता, पा ले जीवन का सार……

संत समाज और कार सेवकों पर जो थी बीती,
त्याग उनका ध्यान में रख पाली, प्राण जाए पर वचन न जाए की रीति।
तय हुई पंचम शती, विक्रम संवत 2080 पौष माह द्वादश तिथि,
सनातनियों ने मंदिर निर्माण में सहयोग देकर बढ़ा ली राम से प्रीति ।
हे प्राण प्रतिष्ठा, न देख तू रास्ता, पा ले जीवन का सार……

प्राण प्रतिष्ठा की प्रतीक्षा का हो चुका अनुष्ठान,
ख़ुश है हृदय, रामलला का अपने घर में होगा प्रतिष्ठान।
पुरुषोत्तम राम सदैव हमारे आदर्श, हमारा मान,
उनकी प्राण प्रतिष्ठा होगी हमारी आन–बान–शान।
हे प्राण प्रतिष्ठा, न देख तू रास्ता, पा ले जीवन का सार……

हम सभी की भागीदारी होगी अयोध्या के द्वार,
करबद्ध निवेदन भूल न जाना 22 जनवरी, सोमवार।
आमंत्रण का न देखो रास्ता, राम सभी के आधार,
दर्शन पाकर रामलाल के हो जाएगा, जीवन का उद्धार।
हे प्राण प्रतिष्ठा, न देख तू रास्ता, पा ले जीवन का सार…….

आमंत्रण का न देखो रास्ता, राम सभी के आधार,
दर्शन पाकर रामलाल के हो जाएगा, जीवन का उद्धार…..

#संध्या रामप्रसाद पाण्डेय
अलिराजपुर (मध्यप्रदेश)

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