डिजिटल दुनिया में भी कायम है प्रिंट मीडिया का महत्व: प्रो. द्विवेदी

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वीणा संवाद केंद्र, इंदौर द्वारा आयोजित व्याख्यान में बोले आईआईएमसी के महानिदेशक

इंदौर। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी का कहना है कि डिजिटल और सोशल मीडिया के सक्रिय हो जाने के बावजूद प्रिंट मीडिया का अलग महत्व है। हमारे सामने भले ही चुनौतियां हैं, लेकिन हम अपनी चुनौतियों का डटकर मुकाबला करते आ रहे हैं। यही कारण है कि आज भी अखबार की साख और इसकी विश्वसनीयता बरकरार है। प्रो. द्विवेदी वीणा संवाद केंद्र, इंदौरवद्वारा मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के शिवाजी सभागार में आयोजित विशेष व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कुमार अष्ठाना ने की एवं विषय प्रवर्तन प्रतिष्ठित पत्रिका ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा ने किया।

‘प्रिंट मीडिया का भविष्य’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि बेहतर अखबार के लिए कंटेंट का मजबूत होना जरूरी है। ऐसा नहीं है कि टेक्नोलॉजी बदलने अथवा टीवी और सोशल मीडिया के आने से अखबारों का भविष्य खतरे में है। ऐसा होता, तो जापान में अखबार नहीं छपते, क्योंकि वहां की तकनीक भी हमसे बहुत आगे है और मोबाइल भी वहां बहुत ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि अखबारों को उस कंटेंट पर काम करना चाहिए, जो वेबसाइट या टीवी चैनल पर उपलब्ध नहीं हैं। पठनीयता के संकट को देखते हुए यह जरूरी है कि अखबार नए तरीके से प्रस्तुत हों और ज्यादा ‘लाइव प्रस्तुति’ के साथ आगे आएं।

आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार अखबार अपने आप में विशिष्टता पैदा करें। अखबार को अब अपना व्यक्तित्व विकसित करना होगा। उन्हें खास दिखना होगा। उसको किसे संबोधित करना है, इसका विचार करना होगा। उन्हें एक समर्पित संस्था की तरह काम करना होगा। अब वे सिर्फ खबर देकर मुक्त नहीं हो सकते, उन्हें अपने सरोकारों को स्थापित करने के लिए आगे आना होगा। अब अखबार का मुख्य उत्पाद खबर नहीं है। उसका सरोकार, उसकी विश्लेषण शक्ति, उसकी खबरों के पीछे छिपे अर्थों को बताने की क्षमता और व्याख्या की शैली उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

प्रो. द्विवेदी ने कहा आज अखबार को स्थानीय जनों से एक रिश्ता बनाना पड़ेगा, जिसके मूल में खबर नहीं, स्थानीय सामाजिक सरोकार होंगे। सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव ही किसी अखबार की स्वीकार्यता में सहायक होगा। शायद इसीलिए अब अखबार इवेंट्स और अभियानों का सहारा लेकर लोगों के बीच अपनी पैठ बना रहे हैं। इससे ब्रांड वैल्यू के साथ स्थानीय सरोकार भी स्थापित होते हैं। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक विमर्शों के मंच बनकर ही अखबार अपनी साख बना और बचा सकते हैं। अखबार विचारों को थोपने के बजाए, विमर्श के मंच की तरह काम करें। समाचार और विचार पक्ष अलग-अलग हैं और उन्हें अलग ही रखा जाए। हमें खबरों में विचारों की मिलावट से बचने के प्रयास करने होंगे।

प्रो. द्विवेदी के अनुसार अखबारों ने एक लंबे अरसे से ये मान लिया है कि उनका काम सिर्फ संकटों की तरफ उंगली उठाना है। लेकिन संकट का समाधान ढूंढना और लोगों को न्याय दिलाना भी अखबार की जिम्मेदारी है। एक संस्था के रूप में अखबार बहुत ताकतवर हैं। इसलिए उन्हें सामान्यजनों की आवाज बनकर उनके संकटों के समाधान के प्रकल्प के रूप में सामने आना चाहिए। वे सहयोग के लिए हाथ बढ़ाएं और एक ऐसा वातावरण बनाएं, जहां अखबार सामाजिक उत्तरदायित्वों का वाहक नजर आए।

इस अवसर पर उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी, मप्र के निदेशक जयंत भिसे, वीडी ज्ञानी, वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर, श्री हरेराम बाजपेयी, सदाशिव कौतुक, प्रदीप नवीन, प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, प्रो. पुष्पेंद्र दुबे, अरविंद ओझा, मुकेश तिवारी, कविता वर्मा, डाॅ. अर्पण जैन, प्रीति दुबे, नारायण भाई जोशी, केएल जोशी, लक्ष्मीकांत पंडित,श्याम बैरागी, वाणी जोशी, सोहन दीक्षित सहित अनेक लेखक एवं पत्रकार मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन अंतरा करवाड़े ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. वसुधा गाडगिल ने दिया।

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