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वक्त ने फिर मुझे आजमाया बहुत
एक मैं था कि बस मुस्कुराया बहुत
कारवां है कि जो हौसलों से चला
लक्ष्य उसने यहाँ शीघ्र पाया बहुत
जिंदगी की उलझनों से परेशान था
मैंने अपने को ही तो मनाया बहुत
मेरी तनहाइयों की न पूछो दशा
इस जमाने ने मुझको सताया बहुत
याद दिल से न जाती तुम्हारी के कभी
भूलना था जिसे याद आया बहुत
गीत-ग़ज़लों का मैंने सहारा लिया,
आज हालात ने है लिखाया बहुत
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
भटेरा चौकी बालाघाट
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