देखो माँ उसको भुला दिया

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जिसके बिन जी न पाता था
जिसके बिन मर न पाता था
जिसे लांख दूर करना चाहूँ
पर दूर भी न कर पाता था
ख्वाब जो पनपा करते थे
हाँ, तेरे लाल के नैनन में
उन सभी ख्वाब को भी मैंने
हरदम के लिए है सुला दिया
देखो माँ, देखो माँ, देखो माँ उसको भुला दिया।।
गमगीन मुझको देखकर जब
तुम फफककर रोती हो
सारे कलंकित दाग मेरे
जिंदगी के धोती हो
हाँ मानता हूँ मैं की माते
प्यार में कोई ठग गया है
किन्तु तेरा लाडला हाँ
और भी अब जग गया है
नर्म सा नाजुक सा तेरा
चाँद सा बेटा वही हूँ
कुछ तो रहता था मैं बदला
किन्तु अब बिल्कुल सही हूँ
जो भी मैं नाम रटा करता था
सुबह-शाम जपा करता था
उस नाम को मैंने रुला दिया
देखो माँ, देखो माँ, देखो माँ उसको भुला दिया।।
मिला था उससे जहाँ कहीं
याद नहीं उस ठाँव का
वैसे भी मैं क्या करता
बिन कस्ती के उस नाव का
आज की जब शब्द भी
मेरी लेखनी पर फिदा हैं
कविताओं और गीत गजलों
से नाम उसका जुदा है
अब ना मैं उसको याद करूँगा
तुझसे मेरा ये वादा है
तेरे चेहरे की खुशी की खातिर
ऐसा अब मेरा इरादा है
दिल के कोने में जो सजा हुआ था
थोड़ा-थोड़ा जो बचा हुआ था
उस प्यार को मैंने घुला दिया
देखो माँ, देखो माँ, देखो माँ उसको भुला दिया।।

डॉ विकास चौरसिया
वाराणसी

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