
नज़ाकत समय की समझा करो
नहीं हर एक से उलझा करो
अपरिचित से न हाले दिल कहो
मात्र दो बात कर चलता करो।।१
वैसे तो आवारा बनकर घूम रहे
अंबर धरती उछल उछल कर झूम रहे
जब मित्रों का प्यारा प्यारा साथ मिला
अपनी उनकी गाथा सुनकर झूम रहे।।२
एक सज़ल
गुजर जाएगा ही यह दौर भी।
बंधेगा शीश एक दिन मौर भी।।
कोरोना काल बनकर आ गया
छिन गया अपने मुंह का कौर भी।।
कोंपलें, पत्तियां शाखा दिखी तो
आएगा वृक्ष में कल बोर भी।।
करता जैसा है जो वह भुगतता है
साथ में आता है कुछ और भी।।
आस्था समर्पण श्रद्धा यह कहती
शिव के संग पूजते गणगौर भी।।
मात्र धन से नहीं मिलता है सभी कुछ
जानना होता तरीका तौर भी।।
खड़े शैलेश हो तो एक दिन
मिलेगा बैठने को ठौर भी।।
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश
वाराणसी