
जोर शोर का संगीत बड़े बड़े लोगों की भीड़।एक के बाद एक भाषण।साथ ही बारीक से बारीक काम की चर्चा।
वाह ! ठेकेदार साब वाह !! आपने तो कमाल कर दिया। अपने रात दिन के कठिन श्रम से असंभव को संभव कर दिया।
ठेकेदार फूले न समाए।आज पुल के उद्घाटन अवसर था।एक के बाद एक कितनी मालाएं गले में पड़ गईं।
दुर्भाग्यवश श्रमकणों को बहाते नींव की ईंट बनें मजदूरों का कहीं नाम नहीं ?
उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों बलिदान की चर्चा भी नहीं ??
खेत वहीं का वहीं
कभी जाड़े की ठिठुरन के बावजूद अल्कू का झबरू कुत्ता खेत की निगरानी से पीछे न हटता था ।नींद आने पर दोनों आपस में लिपट कर सो जाते थे ।
फसल भी पककर उसका एक एक दाना सुरक्षित घर पहुंच जाता था ।
आज जब हम अपने आस पास नजर डालते हैं तो सायौ होते ही खेतों की ओर कजम बढाते नजर आते हैं ।जिनको झबरू कुत्ता के साथ उसका मालिक भी खेत से भगाने में असफल हो जा रहा है ।
यह अन्तर केवल इन जानवरों के पालतू जंगली हो जाने से ही नहीं अपितु मशीनीकरण व सरकारी मशीनरी के द्वारा इनका कागजों और गौशालाओं में चारा खा जाने से भी आया है ।
परिणाम शत प्रतिशत दाने के स्थान पर साठ-सत्तर प्रतिशत ही घर पहुंच पा रहा ।खेत वही का वहीं ।
शशांक मिश्र भारती
बड़ागांव शाहजहांपुर