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सोचते भी हो हमे एक पल के लिए कभी
भूलते ही नही हम तुम्हे एक पल के लिए भी।
कि न खुद से भी कभी जो हमने
मोहोबत तुम्ही को बेहिसाब भेजते है।
शिद्दत से पाला थाजिंदगी को
सांसो का अपनी अपनी हिसाब भेजते हैं।
समझोगे दिल की बेचेनिया शायद
दिल अपना तुमको असबाब भेजते है।
रखी थीबहुत सम्भालके जोयादे
वो हर पल कालिखा हिजाब भेजते हैं।
तू नही तो हम भी बगेर तेरे क्या हैं
जीने की अपनी तुम्हे किताब भेजते हैं।
बुझ ही जाए शमा इससे पहले
पहलू में आपके खुद को जनाब भेजते है।
रख लो या की मिटादो हमे तुम
हम तुमको अपना आखिरी जवाब भेजते है।
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
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