——-#नवीन श्रोत्रीय “उत्कर्ष”
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दोस्त! वादा किया नहीं होता।
आज तेरे,यहां नहीं होता।।
सहता क्यों दर्द ,रोगी कैंसर का।
खैनी गुटखा ,भखा नहीं होता।।
रंजिशें घर में,कलह नहीं बढ़तीं।
दारु-आदी,हुआ नहीं होता।।
हाड़ ढाँचे में मांस भी होता।
खून स्मैकिया नहीं होता।।
खांसी बलगम न श्वांस ही भरती।
बीड़ी सिगरेट,पिया नहीं होता।।
विषय विष से जो मन नहीं हटता।
उम्र पूरी जिया नहीं होता।।
बुझ चुका होता,ज़िन्दगी का दिया।
प्यार खुद से किया नहीं होता।।
बुद्ध,जिन ,नानक , कबीरा होता।
नशा ‘निरपेक्ष’ लिया नहीं होता।।
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