हिन्दी माध्यम से पढ़े होने का दर्द​?

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इस सवाल पर लोगों द्वारा किए गए चुनिंदा कमेंट्स यहां पढ़वा रहे हैं..पढ़िए हिन्दी माध्यम वालों का दर्द….
-किशनसिंह ने लिखा-‘बिलकुल परेशानी हुई,ये हमारी शिक्षा व्यवस्था की नाकामी है कि 12वीं तक साइंस पढ़ने वाले हिन्दी में पढ़ते हैं,लेकिन बीएससी इंग्लिश में करते हैंl ऐसे में प्राइवेट सेक्टर में तो आप नौकरी सोच भी नहीं सकतेl  शुरू से सारे विषय इंग्लिश में पढ़ाए जाने चाहिएl`
-पवन कुमार अच्छी इंग्लिश में अपना हिन्दी का दर्द बताते हैंl वो कहते हैं-‘इंग्लिश में न बोल पाने की वजह से मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ाl मर्चेंट नेवी का एग्जाम देते हुए इंग्लिश में जवाब न दिए जाने की वजह से मेरा सिलेक्शन नहीं हो पाया थाl ‘
-नसीम अहमद ख़ान लिखते हैं-‘बचपन से हिन्दी में पढ़ाई की थीl एग्जाम में अच्छे से लिख नहीं पाता थाl लिखते हुए इंग्लिश के शब्द ही नहीं मिलतेl इंग्लिश में बात करने में झिझक महसूस होतीl मैंने ऐसा पाया कि जो हिन्दी बोलते हैं,उनको समाज में थोड़ा कमतर समझा जाता हैl आप फेसबुक पर देखिए,जो लोग इंग्लिश में पोस्ट डालते हैं उन्हें काफी अटेंशन दी जाती हैl ‘
-शफीकउर रहमान खान ने लिखा-‘जब मैं पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा था,तब मेरे कुछ साथी और टीचर्स मेरा मज़ाक उड़ाते थेl मैं जब इंटरव्यू के लिए गया,तब भी खुद के इंग्लिश न बोल पाने को मैं कभी नहीं भूल सकताl ‘
-भावेश झा लिखते हैं-‘स्कूली दिनों में इंग्लिश के उच्चारण के कारण मेरा मज़ाक बनाया जाता था,जब मैं पुणे के सिम्बायोसिस युनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन के लिए गया तो अंग्रेजी नहीं बोल पाता थाl फिर मैंने शिक्षक दिवस पर हिन्दी में भाषण दिया,जिसे सबने सराहाl मेरे अच्छे भाषण की वजह से लोग मुझे जानने लगेl अगर आत्मविश्वास हो तो आप हिन्दी के सहारे भी अपनी जगह बना सकते हैंl’
-कृष्णा फेसबुक पर लिखते हैं-‘बस पूछिए मत,बहुत दर्द झेलना पड़ता हैl जो लोग हिन्दी का गुणगान करते हैं,मैंने ऐसे लोगों को इंग्लिश को सपोर्ट करते देखा हैl ‘
-शैतान सिंह कहते हैं-‘कई बार ऐसा लगता है कि,काश हम इंग्लिश मीडियम में पढ़े होते,क्योंकि जब हिन्दी से इंग्लिश मीडियम में जाते हैं तो बाकी साथियों की तरह हम सब कुछ समझ पातेl ‘
-विवेक चंद्रा ने लिखा-‘हिंदी मीडियम में पढ़ने से अच्छा है कि ज़ाहिल ही रहेंl हिन्दी मीडियम में पढ़कर आप उच्च शिक्षा भले ही हासिल कर लें,लेकिन भारत में इससे काम नहीं चलेगाl भारत में इंग्लिश मीडियम की पढ़ाई सिर्फ अमीरों के लिए है,जो शासक हैं वो इसे अच्छे से समझते हैंl ‘
                                                                                            (आभार-वैश्विक हिन्दी सम्मेलन)

————————————#विजय कुमार मल्होत्रा

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।