उम्र यूँ रेत-सी फिसलती रही,
लाख बंदिशों के बावजूद बिखरती रही।
ना मुकाम पाया ,ना मुकाम का कोई निशां,
जिन्दगी तो मेरी राह में निकलती रही …l
अरमां थे कि ख्वाबों का बनाएँगे आशियाना,
जोड़ने लगा मैं तिनके –तिनके,चुन –चुन के
मगर आँधियाँ मुझसे होकर फिर गुजरती रही।
पाने तुझे क्या-क्या न तलाशा ए –परवर दिगार,
रूह तलक तुझे ढूँढने निकलती रही …
सुनकर तेरी आहट भटकती रही …।
सुना है कि तू खुद्दार है हे खुदा ,
होता नहीं तू अपने बंदे से जुदा
क्यों ना आ पाया तू मेरी पुकार पर,
मेरी आहें तेरी खुशबू को मचलती रही।
कुछ ऐसा कर करतब ओ बाजीगर कि …,
मेरा यकीं न उठ पाए तुझसे–तेरे दर से
बस एक तू ही मेरा सच्चा राजदाँ लगता है
तेरे सजदें में मेरी उम्मीद अब तलक पलती रही।
एक यही फरियाद है इस फकीर की ए `मनु`,
हिफ़ाजत की चादर तू फैला मेरे मौला…
रूह मेरी उस साँचे में ढल जाए,
जिसमें मीर–औ–गालिब की ढलती रही …l
————————-#मनोज सामरिया `मनु`
सादर धन्यवाद ,
परिचय : मनोज कुमार सामरिया `मनु` का जन्म १९८५ में लिसाड़िया( सीकर) में हुआ हैl आप जयपुर के मुरलीपुरा में रहते हैंl बीएड के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य ) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) भी किया हुआ हैl करीब सात वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैंl लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी करते हैंl आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं।
Sunder rachana by manon kumar samariya manu
सुन्दरतम कृति…
मनु जी शुभकामनाये..।
वन्दन..।।