बदरा-मेघा

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बिरहन के अंगन,बदरा क्यों बरसे,
बरस कर उसके अंगन,क्यों हरषे।
बिरहा की तपन न हिय से गई,
बात जिया की पिया से कही न गई..
आग जिया की और बढ़ाई, तो क्यों बरसे ?
ओ रे मेघा,संग लाओ पिया को,
मुझ बिरहन से मिलाओ पिया से।
तब अंगन में संग नाचूँ तुम्हारे,
फिर अंगन में निश दिन बरसो हमारे।
ओ मेघा,ओ बदरा,कर जोड़ूँ तुम्हारे,
हिय की अगन न और बढ़ा रे ।।

 #अरविंद ताम्रकार ‘सपना’

परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की  शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।

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